बिग ब्रेकिंग: प्रयागराज शहर और कुंभ मेला क्षेत्र के सभी एंट्री प्वाइंट बंद

प्रयागराज में कुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और प्रशासनिक क्षमता की परीक्षा भी है। लेकिन इस बार आस्था का यह महासंगम अव्यवस्था और कुप्रबंधन की बलि चढ़ता दिख रहा है। प्रयागराज शहर और कुंभ मेला क्षेत्र के सभी एंट्री प्वाइंट अचानक बंद कर दिए गए हैं, जिससे लाखों श्रद्धालु जहां के तहां फंस गए हैं।

 

भयंकर भीड़, बदइंतजामी और थकान से बेहाल श्रद्धालु

 

हर किसी के मन में एक ही सवाल—“आखिर हो क्या रहा है?” प्रशासन की ओर से कोई स्पष्ट सूचना नहीं। लोग 15-20 किलोमीटर तक पैदल चलने को मजबूर हैं, लेकिन फिर भी कुंभ क्षेत्र में प्रवेश नहीं मिल रहा। जो जहां है, वहीं थम गया है।

 

शासन की भूमिका शून्य है। स्थिति यह है कि श्रद्धालुओं को यह तक नहीं बताया जा रहा कि कौन-सा मार्ग कब खुलेगा। व्यवस्था चरमराने का आलम यह है कि माइक से बस यह ऐलान हो रहा है—“जहां जो घाट मिले, वहीं स्नान करिए और लौट जाइए।”

 

यह आदेश किसी आपातकालीन स्थिति का अहसास कराता है। क्या प्रशासन ने यह अनुमान नहीं लगाया था कि अमुक दिन कितनी भीड़ उमड़ेगी? क्या मेला प्रबंधन इतने बड़े आयोजन के लिए तैयार नहीं था?

 

बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित

 

इस भयंकर भीड़ और अव्यवस्था के बीच सबसे ज्यादा पीड़ा झेल रहे हैं बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे। न सिर्फ उन्हें कई किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ रहा है, बल्कि पीने के पानी तक की समुचित व्यवस्था नहीं है। प्रशासनिक लापरवाही की यह पराकाष्ठा है कि बेसुध श्रद्धालुओं की कोई सुध लेने वाला नहीं।

 

स्थिति इतनी खराब है कि नागवासुकी मंदिर क्षेत्र नरक बन चुका है। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ यहां ठहरे पानी की तरह जमी हुई है, जहां से निकलना नामुमकिन होता जा रहा है।

 

कुंभ क्षेत्र में घुसना आम आदमी के लिए दिवास्वप्न

 

शासन-प्रशासन की लापरवाही ने इस महायोजना को अव्यवस्था का अड्डा बना दिया है। व्यवस्थाओं के नाम पर सिर्फ दिखावा किया गया। श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा की कोई ठोस योजना नहीं बनाई गई। परिणामस्वरूप, आम आदमी के लिए कुंभ क्षेत्र में प्रवेश करना ही दिवास्वप्न बन गया है।

 

अगर कुंभ मेले में यही हाल रहा तो सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन की कोई जवाबदेही तय होगी? या फिर श्रद्धालुओं की इस पीड़ा को ‘सामान्य भीड़-प्रबंधन चुनौती’ कहकर टाल दिया जाएगा?

 

शासन-प्रशासन की नाकामी स्पष्ट

 

कुंभ मेले जैसे विश्वस्तरीय आयोजन की सफलता सिर्फ भीड़ के अनुमानित आंकड़ों से नहीं, बल्कि व्यवस्थाओं की तैयारी और उसके सुचारू संचालन से तय होती है। लेकिन इस बार जो हालात हैं, वे दर्शाते हैं कि शासन ने न तो पूर्वानुमान सही लगाया, न ही भीड़ नियंत्रण की कोई ठोस रणनीति बनाई।

 

अब सवाल यह उठता है कि क्या सरकार इस आपदा जैसी स्थिति को गंभीरता से लेकर तत्काल राहत के उपाय करेगी? या फिर श्रद्धालु अपनी आस्था के साथ इस पीड़ा को भी एक ‘संयम परीक्षा’ मानकर चुपचाप सह लेंगे?

 

यह कुंभ, कुंभ नहीं बल्कि अव्यवस्था का महासंगम बन चुका है!

 

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