सड़ती हुई सोच: रणवीर इलाहाबादिया और समय रैना, समाज के भयानक खतरें

हम जिस समाज में जी रहे हैं, वहाँ रोज़ाना हम किसी न किसी रूप में नई गिरी हुई सोच का सामना करते हैं। लेकिन कुछ बातें दिमाग़ को झकझोर देती हैं, कुछ बातें ऐसी होती हैं जो केवल समाज की गिरावट को ही नहीं, बल्कि इंसानियत की भी सरेआम हत्या करती हैं।

हाल ही में रणवीर इलाहाबादिया का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें उसने ऐसा सवाल पूछा, जो न केवल अश्लील था, बल्कि शर्मनाक भी था। उसने अपने शो में एक सवाल उठाया—“क्या आप अपने माता-पिता को हर रोज़ सेक्स करते हुए देखेंगे, या फिर एक बार खुद शामिल होंगे?”

 

यह सवाल सुनकर शायद हर किसी का दिल बैठ गया होगा, और यह कोई सामान्य हास्य नहीं था, बल्कि समाज की जड़ों में मच्छरदानी जैसा जहर घोलने का काम कर रहा था। किसी व्यक्ति का अपने मां-बाप के बारे में ऐसी सोच रखना, यह केवल उस व्यक्ति का मानसिक दिवालियापन नहीं, बल्कि पूरी पीढ़ी की मानसिकता को बर्बाद करने का ख़तरनाक संकेत है।

यही नहीं समय रैना, जो कि एक प्रसिद्ध एंकर और सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर हैं, भी इस शो में  थे, लेकिन उन्होंने इस प्रश्न पर कोई त्वरित प्रतिक्रिया या विरोध नहीं किया। यह न केवल उनकी अपनी विचारधारा को संदिग्ध बनाता है, बल्कि यह समाज के लिए भी एक खतरनाक संकेत है। जब सार्वजनिक मंचों पर इस तरह के विचारों को प्रोत्साहन मिलता है, तो यह उस मानसिकता को संचारित करता है, जिसे कोई भी सभ्य समाज स्वीकार नहीं कर सकता।

ये सवाल जो केवल रणवीर इलाहाबादिया ने नहीं पूछा, बल्कि इसके द्वारा की जाने वाली ऐसी टिप्पणियां पूरी तरह से उस घिनौनी मानसिकता को परिभाषित करती हैं, जो इस दौर में तेजी से फैल रही है। जब एक सार्वजनिक व्यक्ति इस तरह के सवाल पूछता है, तो यह न केवल उसे, बल्कि उसकी लाखों-करोड़ों फॉलोवर्स को भी प्रभावित करता है।

यहां पर एक अहम सवाल उठता है—क्या हम सच में इस तरह के जोक्स को अपनी नई पीढ़ी के लिए आदर्श बना सकते हैं? क्या हमारे बच्चे उस विचारधारा को ही अपनाएंगे, जिसे सार्वजनिक रूप से बढ़ावा दिया जा रहा है? क्या हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों को इस खतरनाक सोच से बचाना नहीं चाहिए?

यह एक असली चिंता का विषय है। आजकल की सोशल मीडिया संस्कृति में, जहां कुछ भी सनसनीखेज़ हो सकता है, यह जरूरी है कि हम अपने बच्चों को इस तरह के कृत्यों से बचाएं। क्योंकि अगर यह सोच बढ़ती है, तो आने वाले समय में समाज का ढांचा टूट जाएगा। यह केवल एक मजाक या जोक नहीं है, बल्कि यह हमारे बच्चों की सोच को नष्ट करने की साज़िश है।

 

समाज में ऐसे मानसिक प्रदूषण से बचने के लिए हमें अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। इस जहर को फैलने से रोकना हमारे हाथ में है, और यह केवल हमारे बच्चों के भविष्य के लिए नहीं, बल्कि हमारे समाज के स्वस्थ रहने के लिए भी जरूरी है।

 

रणवीर इलाहाबादिया का यह बयान न केवल समाज के लिए शर्मनाक है, बल्कि यह पूरे मीडिया उद्योग और उसके प्रभाव के खतरों को भी उजागर करता है। हमें अब इस पर गहरी नज़र डालनी होगी, क्योंकि अगर समय रहते इस मानसिकता को नहीं रोका गया, तो यह एक बड़े सामाजिक संकट का रूप ले सकता है।

 

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