नई दिल्ली | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय संगठनों की कार्यशैली पर तीखा प्रहार करते हुए संयुक्त राष्ट्र (UN) को “अप्रासंगिक और अक्षम” करार दिया है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएँ अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने में असफल हो रही हैं, और वास्तविक सुधारों की कोई गुंजाइश नहीं दिख रही है।”
PM मोदी का यह बयान वैश्विक राजनीति में संयुक्त राष्ट्र की निष्क्रियता और पक्षपातपूर्ण रवैये पर भारत की बढ़ती असहमति को दर्शाता है। उन्होंने कहा, “अब समय आ गया है कि UN में व्यापक सुधार हों। यह संगठन अब सिर्फ एक विचारधारा विशेष के नियंत्रण में आकर अपनी उपयोगिता खो चुका है।”
UN पर भारत की असहमति क्यों?
- भारत लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यता की माँग कर रहा है, लेकिन सुधारों की गति बेहद धीमी है।
- वैश्विक संकटों पर UN का निष्क्रिय रवैया, विशेषकर आतंकवाद और भू-राजनीतिक संघर्षों पर, उसकी विश्वसनीयता को कमजोर कर रहा है।
- पश्चिमी देशों के प्रभाव में आकर UN “वामपंथी गढ़” बन गया है, जिससे निष्पक्षता की उम्मीदें धूमिल हो रही हैं।
क्या होगा आगे?
PM मोदी के इस बयान से अंतरराष्ट्रीय मंच पर बड़ी बहस छिड़ सकती है। भारत अब संयुक्त राष्ट्र में सुधारों को लेकर कड़ा रुख अपना सकता है और संभावित रूप से नए वैश्विक गठजोड़ की दिशा में बढ़ सकता है।
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