डॉ. रूमा देवी ने सुमंगल दीपावली मेले में बढ़ाया राजस्थान की महिलाओं का मान — कहा, “लोक कला ही हमारी असली पहचान है”

राजीविका की महिला कलाकारों की चित्रकला और हस्तशिल्प से मोहित हुईं लोक कला विशेषज्ञ, विदेशी पर्यटकों ने भी की सराहना

जयपुर, 8 अक्टूबर। राजस्थान की लोक संस्कृति, रंग और रचनात्मकता का अद्भुत संगम आज सुमंगल दीपावली मेला–2025 में देखने को मिला, जब प्रसिद्ध लोक कला विशेषज्ञ डॉ. रूमा देवी ने राजीविका की महिला कलाकारों की प्रदर्शनी का अवलोकन किया। उनकी उपस्थिति ने न केवल महिला कलाकारों का उत्साह बढ़ाया, बल्कि राजस्थान की लोक कला को एक नई पहचान भी दी।

राजस्थान ग्रामीण आजीविका विकास परिषद (राजीविका) द्वारा आयोजित इस मेले में डॉ. रूमा देवी ने स्व-सहायता समूहों (SHGs) की महिलाओं द्वारा तैयार की गई पारंपरिक कलाओं की प्रशंसा करते हुए कहा—
“राजस्थान की माटी में जो रचनात्मकता है, वह अनमोल है। जब ग्रामीण महिलाएं अपनी कला को मंच पर लाती हैं, तो वे न केवल अपनी पहचान बनाती हैं, बल्कि समाज को सशक्त बनाने में भी योगदान देती हैं।”

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उन्होंने कहा कि राजीविका जैसे मंच ग्रामीण प्रतिभाओं को अवसर देने का उत्कृष्ट माध्यम हैं, जो महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता और आत्मविश्वास दोनों प्रदान करते हैं। डॉ. रूमा देवी ने विशेष रूप से उन महिला कलाकारों को बधाई दी जिन्होंने अपनी चित्रकला से परंपरा और आधुनिकता का सुंदर मेल प्रस्तुत किया है।

इस अवसर पर जयपुर की मंडला आर्ट, प्रतापगढ़ की मांडना आर्ट, अजमेर की बणी ठनी और पिछवाई पेंटिंग्स, तथा जयपुर की हैंड पेंटिंग्स दर्शकों के आकर्षण का केंद्र बनीं। इन कलाकृतियों की सूक्ष्म रेखाएं, रंगों की गहराई और पारंपरिक थीम ने हर आगंतुक को प्रभावित किया।

मेले में पहुंचे विदेशी पर्यटक भी इन कलाओं से खासे प्रभावित हुए। उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति को इतनी सुंदरता और भावनाओं के साथ प्रस्तुत करने की परंपरा विश्व में अनोखी है।

सुमंगल दीपावली मेला–2025 में हर दिन सैकड़ों लोग राजस्थान की लोक कला, हस्तशिल्प और स्थानीय व्यंजनों का आनंद ले रहे हैं। यह मेला 1 अक्टूबर से 12 अक्टूबर 2025 तक इंदिरा गांधी पंचायती राज संस्थान, जवाहरलाल नेहरू मार्ग, जयपुर में प्रतिदिन सुबह 10 बजे से रात 9 बजे तक आयोजित किया जा रहा है।

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डॉ. रूमा देवी की प्रेरणादायक उपस्थिति ने इस आयोजन को सिर्फ एक मेला नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का उत्सव बना दिया है।

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