उत्तराखंड में पत्रकार उत्पीड़न पर बवाल: अजीत राठी ने उठाया सवाल, सरकार ने समझा ‘अपराध’, पत्रकारों ने दी आंदोलन की चेतावनी

देहरादून/नई दिल्ली, 13 अक्टूबर 2025

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला माने जा रहे एक घटनाक्रम ने पूरे देश का ध्यान खींच लिया है। वरिष्ठ पत्रकार अजित राठी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई और पुलिसिया दबाव ने न केवल पत्रकारिता जगत में हलचल मचा दी है, बल्कि सत्ता के असहिष्णु रवैये पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।


सवाल जिसने सत्ता को हिला दिया

अजित राठी ने जब देहरादून के आईटी पार्क की कीमती सरकारी ज़मीन को 90 साल की लीज़ पर निजी बिल्डर को दिए जाने के फैसले पर सवाल उठाया, तो सत्ता तिलमिला उठी।
उन्होंने केवल इतना पूछा था —

“जिस ज़मीन को आईटी इंडस्ट्री और प्रदेश के युवाओं के रोज़गार के लिए सुरक्षित रखा गया था, उसे निजी फ्लैट प्रोजेक्ट में क्यों बदल दिया जा रहा है?”

लेकिन सरकार ने इस सवाल को आलोचना नहीं, बल्कि “अपराध” समझ लिया।

सूत्रों के मुताबिक, राठी द्वारा सोशल मीडिया पर साझा किए गए तथ्यों और सवालों के बाद सरकार की ओर से उन्हें कानूनी नोटिस भेजा गया। इसके बाद स्थानीय पुलिस ने उनके आवास पर जाकर पूछताछ की। बताया जा रहा है कि तीन दिनों तक पुलिसकर्मी उनके घर के बाहर आते-जाते रहे, जिससे परिवार में भय और तनाव का माहौल बन गया।


“मैंने केवल जनता की ज़मीन का सच पूछा” — अजित राठी

अजित राठी ने खुद कहा —

“मैंने कोई निजी एजेंडा नहीं चलाया। मैंने सिर्फ़ यह पूछा कि जनता की ज़मीन पर निजी बिल्डर को इतना बड़ा फ़ायदा देने का औचित्य क्या है। अगर ये सवाल सरकार को बुरा लगा, तो यह लोकतंत्र के लिए चिंता की बात है।”

दरअसल, आईटी पार्क की यह ज़मीन कभी राज्य के युवाओं को तकनीकी क्षेत्र में रोजगार देने के उद्देश्य से अधिग्रहीत की गई थी। अब इसे एक निजी रियल एस्टेट प्रोजेक्ट को लीज़ पर दिए जाने का निर्णय विवाद का केंद्र बन गया है।


प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और उत्तराखंड पत्रकारों की सख्त प्रतिक्रिया

 

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (PCI) ने इस प्रकरण को लोकतंत्र के लिए खतरा बताते हुए उत्तराखंड सरकार की कड़ी आलोचना की है।
PCI के अध्यक्ष गौतम लाहिड़ी और महासचिव नीरज ठाकुर ने अपने बयान में कहा कि यह कार्रवाई “लोकतांत्रिक विमर्श को बाधित करने और पत्रकारों को सच्चाई उजागर करने से रोकने की कोशिश” है।

उधर, प्रेस क्लब ऑफ उत्तराखंड ने भी एक सशक्त बयान जारी करते हुए कहा —

“पत्रकार पर दबाव बनाना लोकतंत्र पर हमला है। सरकार को चाहिए कि वह सवालों के जवाब दे, सवाल पूछने वालों को न डरा-धमकाए।”


पत्रकार संगठनों का अल्टीमेटम – “अगर नोटिस वापस नहीं हुआ, तो आंदोलन होगा”

उत्तराखंड के विभिन्न पत्रकार संगठनों ने ऐलान किया कि अगर अजित राठी को भेजा गया नोटिस तुरंत वापस नहीं लिया गया, तो राज्यव्यापी आंदोलन शुरू किया जाएगा।

“अब डरने वाले नहीं हैं। अगर सरकार प्रेस की आज़ादी पर हमला करेगी, तो जवाब सड़कों से मिलेगा,” पत्रकार संगठनों ने कहा।


RTI से सच सामने लाने की तैयारी

पत्रकारों ने यह भी तय किया है कि सूचना के अधिकार (RTI) के तहत आवेदन दायर किए जाएंगे।

“अब यह सिर्फ अजित राठी की नहीं, पारदर्शिता की लड़ाई है,” पत्रकारों ने कहा।


कांग्रेस का हमला – “पत्रकारों की आवाज़ दबाना अलोकतांत्रिक”

वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कारण माहरा ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सीधे निशाने पर लेते हुए कहा —

“भाजपा सरकार ने राज्य के पत्रकारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर हमला किया है। अजित राठी को नोटिस भेजना लोकतंत्र की आत्मा और प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार है।”


लोकतंत्र की असली परीक्षा

अजित राठी प्रकरण अब उत्तराखंड ही नहीं, पूरे देश के पत्रकारों के लिए एक प्रतीक बन गया है — सत्ता से सवाल पूछने की कीमत क्या होती है।
क्या सरकार प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और पत्रकारों की इस एकजुटता का जवाब संवाद से देगी, या दमन से?
लोकतंत्र की असली परीक्षा अब यहीं से शुरू होती है — क्या सच्चाई बोलने की जगह अब भी बची है?

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