केरल के कन्नूर जिले में एक दुर्लभ लेकिन घातक मानसिक विकार ने 19 वर्षीय छात्र की जान ले ली। मेरुवम्बई निवासी इस युवक ने थालास्सेरी सहकारी अस्पताल में अंतिम सांस ली, कारण था—एनोरेक्सिया नर्वोसा, एक ऐसा विकार जो खाने की आदतों को नहीं, बल्कि पूरी ज़िंदगी को तबाह कर देता है।
एनोरेक्सिया नर्वोसा: जब भोजन दुश्मन बन जाए
यह सिर्फ ‘कम खाना’ नहीं, बल्कि एक मानसिक, व्यवहारिक और शारीरिक त्रासदी है, जहां मरीज को हर निवाले में मौत दिखती है। इस बीमारी में व्यक्ति को वजन बढ़ने का तीव्र भय होता है, और वह भोजन से खुद को लगातार वंचित करता जाता है। नतीजा? शरीर सिर्फ कंकाल बनकर नहीं रह जाता, बल्कि अंग काम करना बंद कर देते हैं, दिल की धड़कन धीमी हो जाती है, और दिमागी संतुलन बिगड़ जाता है।
केरल में ऐसा पहला मामला नहीं?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक, एनोरेक्सिया नर्वोसा भारत में आम नहीं, लेकिन अब यह युवा पीढ़ी को तेजी से जकड़ रहा है। खासतौर पर शहरी क्षेत्रों में, जहां “परफेक्ट बॉडी” का जुनून और सोशल मीडिया का दबाव चरम पर है। डॉक्टरों का मानना है कि यह विकार केवल शारीरिक समस्या नहीं, बल्कि एक गहरी मानसिक लड़ाई भी है, जिसमें मरीज खुद को हर दिन खोता चला जाता है।
मीडिया का मौन, समाज की बेरुख़ी
इस दुर्भाग्यपूर्ण मौत ने कई सवाल खड़े किए हैं—क्या हमारा समाज इस बीमारी को गंभीरता से लेता है? क्या मानसिक स्वास्थ्य अब भी उपेक्षा का शिकार है? और सबसे अहम, क्या इस बीमारी से बचाव के लिए जागरूकता पर्याप्त है?
अंततः, क्या सबक लेंगे हम?
यह महज़ एक छात्र की मौत नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि मानसिक स्वास्थ्य केवल “डिप्रेशन” या “एंग्जायटी” तक सीमित नहीं। एनोरेक्सिया नर्वोसा जैसे विकार भी उतने ही घातक हैं, जितनी कोई अन्य बीमारी। जरूरत है सही समय पर पहचान, जागरूकता और सहयोग की—वरना इस ‘मौत की भूख’ का अंत नहीं होगा।
