“कोई सबूत नहीं, कोई मामला नहीं”: उत्तराखंड हाईकोर्ट से रामदेव, बालकृष्ण और पतंजलि को बड़ी राहत

देहरादून | 14 जून 2025

पतंजलि आयुर्वेद और इसके प्रमुख चेहरों – योगगुरु बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण – को उत्तराखंड उच्च न्यायालय से एक अहम कानूनी राहत मिली है। बहुचर्चित भ्रामक विज्ञापन मामले में न्यायालय ने उन पर जारी समन को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने दो टूक कहा – “कोई सबूत नहीं है, तो कोई मामला नहीं बनता।”

यह फैसला सिर्फ एक कानूनी जीत नहीं, बल्कि पतंजलि के लिए उसकी साख की पुनर्स्थापना का संकेत भी है।


💥 क्या था मामला?

यह पूरा विवाद पतंजलि द्वारा विभिन्न रोगों के इलाज के दावे करने वाले विज्ञापनों को लेकर उठा था। शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया कि पतंजलि ने अपने कुछ उत्पादों को लेकर ऐसे दावे किए जो आधुनिक विज्ञान और चिकित्सा पद्धति द्वारा मान्य नहीं हैं
उनका कहना था कि इन दावों को वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं किया गया और फिर भी कंपनी ने इनका प्रचार-प्रसार बड़े पैमाने पर किया।
इन आरोपों के आधार पर रामदेव, बालकृष्ण और पतंजलि के खिलाफ आपराधिक शिकायतें दर्ज हुईं और निचली अदालतों ने समन जारी किए।


⚖️ हाईकोर्ट ने क्या कहा?

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने इस पूरे मामले की गहराई से समीक्षा की और पाया कि शिकायतकर्ता पुख्ता सबूत पेश नहीं कर सके। कोर्ट ने यह साफ कहा:

“आपराधिक कार्यवाही का आधार केवल आरोप नहीं हो सकते। जब तक ठोस, विश्वसनीय और प्रमाणित साक्ष्य न हों, तब तक समन जारी करना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।”

न्यायालय ने अपने फैसले में यह भी जोड़ा कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता और न्यायिक सिद्धांतों के अनुसार “No Proof, No Case” (कोई सबूत नहीं तो कोई मुकदमा नहीं) एक मूलभूत सिद्धांत है।


📢 पतंजलि और संस्थापकों के लिए क्या मायने?

यह फैसला रामदेव, बालकृष्ण और पतंजलि के लिए कानूनी ही नहीं, बल्कि ब्रांड और प्रतिष्ठा के स्तर पर भी बड़ी राहत है।
पिछले कुछ महीनों से पतंजलि की ब्रांड इमेज को लेकर कई सवाल उठाए जा रहे थे। लेकिन हाईकोर्ट का यह फैसला एक स्पष्ट संदेश देता है कि मात्र आरोपों के आधार पर किसी को कठघरे में नहीं खड़ा किया जा सकता


📌 क्या यह पतंजलि के लिए अंत है?

नहीं, यह फैसला केवल इस विशेष मामले तक सीमित है। पतंजलि जैसे विशाल ब्रांड को भविष्य में भी अपने विज्ञापनों को लेकर कानूनी और नियामकीय चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
भारतीय उपभोक्ता संरक्षण कानून और ASCI (Advertising Standards Council of India) जैसे नियामक निकाय विज्ञापनों की पारदर्शिता और वैज्ञानिकता पर लगातार नजर रखते हैं।


🧾 भविष्य की राह और सबक

अब जबकि हाईकोर्ट ने इस मामले में पतंजलि को राहत दी है, संभवतः कंपनी अपनी विज्ञापन नीति की फिर से समीक्षा करेगी। यह अन्य कंपनियों के लिए भी एक चेतावनी है कि अपने दावों को प्रामाणिक, परीक्षणित और कानून-सम्मत बनाना अनिवार्य है।

यह फैसला पूरे कॉरपोरेट और मेडिकल विज्ञापन जगत को एक सीधा संदेश देता है —
“आरोप नहीं, प्रमाण कीजिए।”


🏛️ न्यायपालिका का संदेश स्पष्ट है:

  • केवल आरोपों से न्याय नहीं चलता
  • सबूत के बिना न समन, न मुकदमा
  • न्यायिक प्रक्रिया में मनमानी नहीं चलेगी
  • प्रतिष्ठा को बचाने का अधिकार हर नागरिक और संस्था को है

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