झालावाड़ में सुस्त नौकरशाही और मरा हुआ सिस्टम लील गया मासूमों की जिंदगी!

📍झालावाड़, राजस्थान | Headlinesip Bureau

राजस्थान के झालावाड़ जिले में सरकारी स्कूल की जर्जर इमारत ढहने से कई मासूम बच्चों की मौत हो गई। लेकिन सच्चाई ये है कि ये सिर्फ एक इमारत नहीं गिरी — ये सरकार की ज़िम्मेदारी, अफसरशाही की लापरवाही और चुनावी जुमलों से चलने वाली शिक्षा-व्यवस्था का मुंह चिढ़ाता हुआ पतन है।

📌 पहले शिकायतें हुईं, फिर दीवार गिरी, अब लाशें उठ रही हैं

ग्रामीणों और अभिभावकों का कहना है कि स्कूल की इमारत कई सालों से टूट-फूट रही थी। दर्जनों बार शिकायतें की गईं।
सरकारी अधिकारी आए, फोटो खिंचवाई, चले गए।
जनप्रतिनिधि आए, झूठे वादे देकर निकल लिए।
लेकिन दीवार नहीं सुधरी।
और अब, बच्चे पढ़ाई के लिए स्कूल गए और लाश बनकर घर लौटे।

ये मौतें किसी हादसे की नहीं — ये सरकार की सुस्त नौकरशाही और मरे हुए सिस्टम की वजह से हुईं हत्या हैं।

🔴 सवाल उठते हैं, जवाब देने कोई नहीं आता

  • शिक्षा विभाग के अफसर कहां थे जब बिल्डिंग दरक रही थी?
  • क्यों नहीं किया गया स्कूल का ऑडिट?
  • क्यों फाइलें सिर्फ टेबल से टेबल घूमती रहीं?
  • क्या हर बार लाशों पर ही जागेगा प्रशासन?

मुआवज़े की घोषणा कोई इंसाफ नहीं है। ये सिर्फ सरकार की आदत बन चुकी रस्म है —
“मौत हो गई? चलो पैसे बांट दो और जांच बैठा दो…”

⚠️ जिम्मेदार कौन? कोई आगे नहीं आता…

मुख्यमंत्री शोक व्यक्त करते हैं। शिक्षा मंत्री “कड़ी निंदा” करते हैं।
लेकिन कोई यह नहीं कहता —
“हां, हमारी गलती है। हमने लापरवाही की।”
क्यों?
क्योंकि बच्चों की मौत सत्ता की चिंता नहीं, सिर्फ एक आंकड़ा होती है।

😡 हीलाहवेली की सरकारी मशीनरी

जिला शिक्षा अधिकारी से लेकर पंचायत प्रतिनिधियों तक — हर कोई कहता है:
“हमने समय पर सूचना भेजी थी…”
“ऊपर से बजट नहीं आया…”
“निर्माण कार्य का प्रस्ताव लंबित था…”
अरे! जब सबको मालूम था तो बचाया क्यों नहीं गया?
क्या सरकार की मशीनरी सिर्फ एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालने के लिए बनी है?

👩‍👦‍👦 माओं की चीखें सरकार के कानों तक कब पहुंचेंगी?

एक मां चिल्ला रही थी —
“अगर स्कूल की मरम्मत करवा दी होती, तो मेरा बेटा आज मेरे साथ होता…”
क्या अफसरों को ये चीखें सुनाई देती हैं?
या वो अपने एसी दफ्तरों में बैठकर सिर्फ प्रेस नोट और बयान जारी करना जानते हैं?

📲 जनता का गुस्सा फूट पड़ा — सोशल मीडिया पर आक्रोश

#शिक्षा_मंत्री_इस्तीफा_दो और #सरकारी_हत्या जैसे हैशटैग ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे हैं।
लोग पूछ रहे हैं —
“क्या सरकारी स्कूल सिर्फ गरीबों के बच्चों की कब्रगाह बन चुके हैं?”
“क्या शिक्षा विभाग अब सिर्फ टेंडर पास करने का अड्डा है?”


🔚 ये हादसा नहीं, चेतावनी है

अगर अब भी सरकार और अफसरों की आंखें नहीं खुलीं, तो अगली खबर किसी और गांव से आएगी, किसी और स्कूल से मासूमों की लाशें उठेंगी।

जिम्मेदारी तय हो, इस्तीफे हों, जेल हो — वरना ये लोकतंत्र नहीं, व्यवस्थागत हत्या है।

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