🛑 नई दिल्ली, 31 अक्तूबर 2025
भारत की राष्ट्रीय एयरलाइन एयर इंडिया ने केंद्र सरकार से ₹4,000 करोड़ के मुआवज़े की मांग की है। वजह — अप्रैल 2025 में भारत और पाकिस्तान के बीच हवाई क्षेत्र बंदी, जो ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम आतंकी हमले के बाद लागू हुई थी। इस निर्णय ने अंतरराष्ट्रीय उड़ानों की दिशा बदल दी और एयरलाइन की लागत में भारी इज़ाफा कर दिया।
पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र बंदी: संकट की जड़
अप्रैल 2025 में दोनों देशों ने एक-दूसरे के विमानों के लिए हवाई मार्ग बंद कर दिए थे। परिणामस्वरूप, भारतीय एयरलाइनों को यूरोप, उत्तर अमेरिका और पश्चिमी एशिया की उड़ानों के लिए वैकल्पिक रास्तों से होकर उड़ान भरनी पड़ी।
इन नए मार्गों ने 60 से 90 मिनट तक की अतिरिक्त उड़ान अवधि जोड़ दी। इससे ईंधन की खपत, क्रू ड्यूटी घंटे और मेंटेनेंस लागत में भारी वृद्धि हुई।
एयर इंडिया के अनुसार, इन परिस्थितियों में वह हर उड़ान पर औसतन लाखों रुपये का नुकसान झेल रही है। कुल मिलाकर इस संकट ने कंपनी को लगभग ₹4,000 करोड़ का सीधा वित्तीय नुकसान पहुंचाया है।
एयर इंडिया की दलील: “यह नुकसान हमारे नियंत्रण से बाहर था”
एयर इंडिया ने अपने ज्ञापन में कहा कि यह नुकसान किसी परिचालनिक गलती या व्यावसायिक जोखिम से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े रणनीतिक निर्णयों के चलते हुआ है।
कंपनी ने दलील दी है कि राष्ट्रीय हित में किए गए निर्णयों का भार अकेले एयरलाइन पर नहीं पड़ना चाहिए। इसलिए सरकार को इस नुकसान की भरपाई करनी चाहिए।
सरकार के सामने चुनौती: सुरक्षा बनाम अर्थव्यवस्था
सरकार के लिए यह मामला दोहरी चुनौती जैसा है —
एक ओर राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक निर्णय, दूसरी ओर आर्थिक प्रभाव जो नागरिक उड्डयन क्षेत्र पर पड़ रहा है।
विमानन मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि इस मामले पर गंभीर चर्चा चल रही है और सरकार एयर इंडिया के वित्तीय दावों का विस्तृत ऑडिट रिपोर्ट मांग सकती है।
संभावित समाधान: “चाइना सेक्टर” खोलने का प्रस्ताव
एयर इंडिया ने स्थिति को संतुलित करने के लिए एक नया रणनीतिक सुझाव भी दिया है — भारत-चीन सेक्टर को खोला जाए, जिससे उत्तरी और पूर्वी मार्गों से वैकल्पिक ट्रांजिट रूट विकसित किए जा सकें।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि चीन की सहमति मिलती है, तो एयर इंडिया यूरोप और उत्तरी अमेरिका के लिए अधिक किफायती मार्ग बना सकती है।
भू-राजनीतिक असर
यह विवाद केवल एयर इंडिया तक सीमित नहीं है। यह बताता है कि कैसे भू-राजनीतिक तनाव आधुनिक वैश्विक अर्थव्यवस्था को सीधे प्रभावित करता है — खासकर उन उद्योगों को जो आकाशमार्ग पर निर्भर हैं।
यदि यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है, तो इसका असर न केवल भारतीय बल्कि वैश्विक विमानन नेटवर्क पर भी पड़ सकता है।
