सपा से दूरी, भाजपा से नज़दीकी — यूपी की राजनीति में बदले समीकरण

उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों सबसे ज़्यादा चर्चा चायल (कौशांबी) से विधायक पूजा पाल को लेकर है। समाजवादी पार्टी से निष्कासन के महज़ दो दिन बाद उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उनके आधिकारिक आवास पर भेंट की। यह मुलाक़ात स्वतंत्रता दिवस से ठीक पहले और विधानसभा सत्र के फ़ौरन बाद हुई, जिसने सियासी हलकों में नए समीकरणों की अटकलों को तेज़ कर दिया है।

14 अगस्त को विधानसभा में ‘विजन डॉक्यूमेंट 2047’ पर चर्चा के दौरान पूजा पाल ने योगी आदित्यनाथ की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति की खुलकर तारीफ़ की थी। उन्होंने कहा था कि 2005 में उनके पति और पूर्व बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के मामले में न्याय दिलाने के लिए वह मुख्यमंत्री की आभारी हैं। साथ ही, अतीक अहमद जैसे अपराधियों के अंत को उन्होंने अपनी लड़ाई का निर्णायक मोड़ बताया था।

सपा नेतृत्व ने उनके इस बयान को “पार्टी विरोधी गतिविधि” और “अनुशासनहीनता” मानते हुए तत्काल प्रभाव से निष्कासित कर दिया। हालांकि, पूजा पाल अपने रुख़ पर डटी रहीं और इसे न सिर्फ़ अपनी, बल्कि प्रयागराज की अन्य पीड़ित महिलाओं की आवाज़ बताया।

इस घटनाक्रम के तुरंत बाद भाजपा नेताओं ने सपा पर हमलावर रुख़ अपनाया। उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक, मंत्री ओपी राजभर और बेबी रानी मौर्य ने सपा को “महिला विरोधी” और “दलित विरोधी” मानसिकता वाला दल करार दिया।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पूजा पाल का रुख़ 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले बड़े बदलाव का संकेत हो सकता है। हालांकि भाजपा में उनकी औपचारिक एंट्री पर अब तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है।

फिलहाल, सूबे की सियासत में सबसे बड़ा सवाल यही गूंज रहा है — क्या यह मुलाक़ात महज़ शिष्टाचार थी या फिर आने वाले चुनावों की बड़ी रणनीति का हिस्सा?

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