ट्रम्प के ‘पारस्परिक टैरिफ’ का झटका: वैश्विक बाजार में हलचल, भारत पर सीधा वार

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ‘पारस्परिक टैरिफ’ की घोषणा कर दी है, और इसके साथ ही वैश्विक व्यापार की स्थिरता पर एक और हमला हो चुका है। ट्रम्प का सीधा संदेश – “अगर आप अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ लगाते हैं, तो हम भी आपके उत्पादों पर उतना ही टैरिफ लगाएंगे।” इसका मतलब यह है कि भारत, यूरोपीय संघ, जापान और चीन जैसे देश अब अमेरिकी बाजार में व्यापार करने के लिए नई चुनौतियों का सामना करेंगे।

 

बाजार की घबराहट और वैश्विक हलचल

 

इस घोषणा के साथ ही अमेरिकी स्टॉक मार्केट में अस्थिरता देखी गई। वॉल स्ट्रीट में मिलीजुली प्रतिक्रिया रही—कुछ इंडेक्स गिरे तो कुछ ने मामूली बढ़त बनाई। डॉलर हल्का कमजोर हुआ, लेकिन बॉन्ड यील्ड्स में इजाफा देखा गया। एशियाई और यूरोपीय बाजारों में भी मंदी का असर पड़ा, क्योंकि अब हर देश अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर होगा।

 

भारत को सबसे बड़ा झटका

 

ट्रम्प ने हमेशा भारत के टैरिफ नीति की आलोचना की है। अब इस नए नियम के तहत, अमेरिका भारतीय उत्पादों पर भारी टैरिफ लगाने की योजना बना रहा है। इससे भारत के टेक्सटाइल, फार्मा, ऑटोमोबाइल और आईटी सेक्टर पर बुरा असर पड़ सकता है। अमेरिका भारत का एक बड़ा निर्यात बाजार है, और इस कदम से कई भारतीय कंपनियों को नुकसान होगा।

 

वैश्विक व्यापार के लिए नई चुनौती

 

यह नीति न केवल अमेरिका-भारत व्यापार बल्कि पूरे वैश्विक व्यापार को झकझोरने वाली है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (WTO) के नियमों के खिलाफ है और इससे ट्रेड वॉर और तेज हो सकती है। अगर बाकी देश भी इसी नीति पर चलने लगें, तो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बुरी तरह प्रभावित होगी और कीमतें बढ़ेंगी।

 

अगला कदम क्या?

 

इस नीति के खिलाफ देशों की प्रतिक्रिया क्या होगी, यह देखना दिलचस्प होगा। भारत और यूरोपीय संघ जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं, जिससे व्यापारिक रिश्ते और बिगड़ सकते हैं। निवेशकों को सावधान रहने की जरूरत है, क्योंकि आने वाले दिनों में बाजार में और ज्यादा उथल-पुथल देखने को मिल सकती है।

 

ट्रम्प की यह घोषणा केवल एक टैरिफ नीति नहीं, बल्कि एक रणनीतिक चाल भी है, जिसका असर 2024 के अमेरिकी चुनावों तक महसूस किया जाएगा। यह फैसला न केवल वैश्विक व्यापार को हिलाने वाला है, बल्कि इससे अमेरिका और उसके व्यापारिक साझेदारों के बीच नए टकराव की नींव भी पड़ सकती है। अब सवाल यह है – क्या दुनिया इस चुनौ

ती के लिए तैयार है?

 

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