चाइना से खरीदा ‘जुनून’, निकला ‘फुस्स बम’ – पाकिस्तानी सेना को फिर मिला ड्रैगन का धोखा!

नई दिल्ली/इस्लामाबाद, 7 मई – लगता है पाकिस्तान ने एक बार फिर “मेड इन चाइना” का जादू अपने सिर चढ़ा लिया था, और नतीजा वही निकला – फुस्स धमाका। भारत से टकराने के सपने लिए पाकिस्तान ने चीन से मिसाइलें, रडार और HQ-9 जैसे “डिफेंस शोपीस” तो खरीद लिए, लेकिन जब असली परीक्षा की घड़ी आई – तो सब कुछ ध्वनि और प्रकाश के साथ गायब!

पाकिस्तानी सेना ने हाल ही में नियंत्रण रेखा (LoC) पर भारतीय नागरिक इलाकों को निशाना बनाने के लिए जिन चीनी मिसाइलों का सहारा लिया, वे मछली बाजार के पटाखों से भी कम निकलीं। एक के बाद एक मिसाइलें या तो लॉन्च ही नहीं हुईं, या उड़कर कहीं और चली गईं। रही-सही कसर चीनी रडारों ने पूरी कर दी – उन्होंने या तो सही लोकेशन नहीं दी, या फिर पूरा सिस्टम ही हैंग हो गया

सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तान अपनी 95% से अधिक सैन्य ज़रूरतों के लिए चीन पर निर्भर है। हथियारों से लेकर रडार, और HQ-9 जैसे एयर डिफेंस सिस्टम तक, सब कुछ ड्रैगन की फैक्ट्री से आता है। लेकिन इस बार जब भारतीय सेना ने तकनीकी शक्ति और सटीक वार के साथ जवाब दिया, तो चीनी उपकरणों ने वही किया जो इनसे उम्मीद थी – विश्वासघात!

HQ-9 बना “हेल्पलेस क्विट”
चीनी HQ-9 मिसाइल डिफेंस सिस्टम, जिसे पाकिस्तान ने भारत से ‘मुकाबले’ के लिए करोड़ों डॉलर में खरीदा था, एकदम बेअसर साबित हुआ। भारतीय तकनीक के आगे यह सिस्टम न केवल असफल हुआ, बल्कि राडार फीड तक नहीं दे पाया। पाक डिफेंस सूत्रों के मुताबिक, HQ-9 का नाम अब सेना में मज़ाक का विषय बन चुका है – “HQ नहीं, Help Quit है!”

सोशल मीडिया में पाक सेना ट्रोल
इस तकनीकी फजीहत के बाद पाकिस्तानी सोशल मीडिया पर अपनी सेना की स्थिति को लेकर मजाक और मीम्स की बाढ़ आ गई है। एक यूज़र ने लिखा –
“जब तुम चाइनीज़ रडार से भारत को देखना चाहो, तो खुद को ही साफ दिख जाए – समझो तकनीक ने धोखा दिया!”

मोदी सरकार की टेक्नोलॉजिकल बढ़त
मोदी सरकार के कार्यकाल में भारत की सैन्य तकनीक ने जो ऊंचाइयाँ छुई हैं, उसका असर अब सीमा पार भी दिखने लगा है। DRDO द्वारा विकसित स्वदेशी मिसाइल सिस्टम, अत्याधुनिक रडार और रियल टाइम वारफेयर टेक्नोलॉजी ने भारतीय सेना को “रेडी टू रीएक्ट” बना दिया है।

नतीजा: पाकिस्तान के ड्रैगन सपनों की राख
पाकिस्तान ने चीन से जो भी “डिफेंस ड्रीम” खरीदे थे, वे इस समय धुआं-धुआं हो चुके हैं। और सवाल फिर वहीं खड़ा है –
“क्यों न घर में बने विश्वास के हथियार चुने जाएं, बजाय दिखावटी चीनी चमत्कारों के?”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *