नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को लोकसभा में दिए एक तीखे और आत्मविश्वास से भरे भाषण में ऑपरेशन सिंदूर का प्रखर बचाव किया—यह वही सैन्य कार्रवाई थी जो 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद की गई थी। लेकिन भाषण का सबसे चर्चित हिस्सा वह था, जिसमें उन्होंने बिना किसी का नाम लिए, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस दावे को सख़्ती से नकार दिया जिसमें ट्रंप ने खुद को भारत-पाक संघर्ष में ‘मध्यस्थ’ बताया था।
पीएम मोदी का यह बयान घरेलू राजनीति में भले ही लोकप्रिय रहा हो, लेकिन अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक गलियारों में यह सवाल उछाल दिया गया: क्या इस भाषण ने अमेरिका की नाराज़गी को हवा दी? क्या वाशिंगटन की अचानक बदली व्यापारिक मुद्रा इसी ‘डिप्लोमैटिक चोट’ का बदला है?
24 घंटे बाद ही अमेरिकी टैरिफ बम!
मोदी के भाषण के महज एक दिन बाद खबर आई कि ट्रंप प्रशासन ने भारत की प्रमुख निर्यात वस्तुओं पर 25% तक का भारी टैरिफ लगा दिया है। जबकि इसके पहले तक दोनों देश व्यापार वार्ता को लेकर आश्वस्त दिख रहे थे—even amidst the tensions of Operation Sindoor.
अब प्रश्न यह है:
क्या नई दिल्ली वाशिंगटन की ‘ईगो’ पर चोट पहुंचाने की कीमत चुका रही है?
मोदी का संदेश: हम किसी के दबाव में नहीं
प्रधानमंत्री ने संसद में साफ शब्दों में कहा, “भारत अपनी शर्तों पर काम करता है। जो लोग समझते हैं कि भारत पर दबाव डालकर फैसले कराए जा सकते हैं, उन्हें हमारी संप्रभुता की ताकत नहीं पता।”
हालांकि उन्होंने ट्रंप का नाम नहीं लिया, लेकिन संदर्भ इतना स्पष्ट था कि अमेरिका के रणनीतिक हलकों में यह बयान सीधे-सीधे ट्रंप को ‘खारिज’ करने के रूप में देखा गया।
ट्रंप की कार्रवाई: व्यापार की आड़ में दबाव की राजनीति?
भारत-रूस तेल व्यापार को लेकर ट्रंप प्रशासन पहले से असहज था, लेकिन यह आर्थिक प्रतिबंध अचानक नहीं आए। विश्लेषकों का मानना है कि मोदी का भाषण इस ‘असहजता’ को ‘क्रोध’ में बदल गया।
Washington Post की एक रिपोर्ट में कहा गया, “Modi’s refusal to acknowledge Trump’s role may have crossed a diplomatic red line.”
क्या भारत अब एक नई तरह की सजा भुगत रहा है?
भारत के लिए यह सिर्फ आर्थिक मुद्दा नहीं है। यह अमेरिका के साथ रणनीतिक संबंधों के लिए एक चेतावनी भी है:
“या तो हमारे हिसाब से चलो, या कीमत चुकाओ।”
लेकिन मोदी सरकार का रुख साफ है— भारत अब झुकने वाला नहीं।
दिलचस्प बात ये है कि अमेरिका ने इस टैरिफ बम की सूचना ऐसे समय दी जब भारत में ऑपरेशन सिंदूर और पीएम मोदी का भाषण सुर्खियों में था। कुछ विश्लेषकों ने यह तक कहा कि “यह स्क्रिप्ट किसी बॉलीवुड फिल्म से कम नहीं है — सिर्फ इसमें विलेन एक सुपरपावर है।”
कूटनीति या टकराव: आगे क्या?
भारत ने WTO में अपनी आपत्ति दर्ज करवा दी है और व्यापार मंत्रालय सूत्रों के अनुसार, जवाबी टैरिफ की तैयारी भी हो रही है। वहीं मोदी सरकार यह संकेत देने में संकोच नहीं कर रही कि भारत की विदेश नीति अब “गुटनिरपेक्ष” नहीं, बल्कि “भारत-प्रथम” है।
अब दुनिया देख रही है— क्या अमेरिका की यह आर्थिक धमकी भारत को झुका पाएगी या यह टकराव किसी नई वैश्विक व्यवस्था का संकेत है?