सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को संकेत दिए कि अगर बिहार की मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर अवैध कटौती के आरोप सही साबित हुए, तो चुनाव आयोग (ECI) की चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न (SIR) प्रक्रिया को रद्द किया जा सकता है। अदालत की यह टिप्पणी आगामी आम चुनाव से ठीक पहले देश के चुनावी परिदृश्य को हिला देने वाली महत्वपूर्ण टिप्पणी मानी जा रही है।
याचिकाकर्ताओं का आरोप: मनमाना, भेदभावपूर्ण और दोषपूर्ण डिज़ाइन
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें आरोप लगाया गया है कि 1 अगस्त को जारी ड्राफ्ट रोल्स से करीब 65 लाख मतदाताओं के नाम हटा दिए गए हैं। यह संख्या राज्य के कुल मतदाताओं का बड़ा हिस्सा है और चुनाव से महज कुछ महीने पहले यह कदम गंभीर सवाल खड़े करता है।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि ECI द्वारा तय 11 “स्वीकृत” पहचान पत्रों की सूची बिहार की सामाजिक-आर्थिक हकीकत में अव्यावहारिक है।
“अधिकांश बिहारी मतदाताओं के पास ये दस्तावेज़ नहीं हैं। आम पहचान पत्र जैसे आधार, राशन कार्ड या खुद का EPIC वोटर कार्ड तक स्वीकार नहीं किया जा रहा। नतीजतन, लाखों पुराने और पंजीकृत मतदाता — खासकर गरीब और हाशिए पर रहने वाले लोग — सूची से बाहर कर दिए गए हैं,” सिब्बल ने कहा।
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि यह महज नियमित संशोधन नहीं, बल्कि नागरिकता सत्यापन की आड़ में चलाया जा रहा अभियान है।
“चुनाव से ठीक पहले यह प्रक्रिया शुरू करना, निष्पक्षता और मंशा दोनों पर सवाल खड़े करता है। यह व्यापक पैमाने पर मताधिकार छीनने का मामला है,” सिंघवी ने कहा।
कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने इसे “डिज़ाइन के तहत किया गया सामूहिक मताधिकार हनन” बताया और कहा कि आंकड़ों से साफ है कि महिला मतदाता इस प्रक्रिया में अनुपातिक रूप से अधिक प्रभावित हुई हैं।
ECI का जवाब: सबूतहीन आरोप, कानूनी प्रक्रिया
ECI की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह प्रक्रिया केवल मृत मतदाताओं और स्थायी रूप से स्थानांतरित लोगों के नाम हटाने के लिए की जा रही है।
“ये दावे महज अटकलें हैं, जिनका कोई ठोस प्रमाण नहीं है। यह पूरी तरह कानूनी और पारदर्शी प्रक्रिया है, जिसमें राजनीतिक दलों के बूथ स्तर एजेंटों को हटाए गए नामों की सूची भी दी गई है,” द्विवेदी ने कोर्ट में कहा।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: ‘शामिल करना चाहिए, निकालना नहीं’
जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि अगर अदालत को बड़े पैमाने पर अवैध नाम कटौती का प्रमाण मिला, तो पूरी प्रक्रिया रद्द करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी।
“उद्देश्य बड़े पैमाने पर शामिल करना होना चाहिए, न कि बाहर करना। अगर आरोप सही पाए गए, तो हम पूरी प्रक्रिया खारिज कर देंगे,” उन्होंने कहा।
अदालत ने यह भी जोड़ा कि नागरिकों के अधिकारों को प्रक्रिया के नाम पर सीमित करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। मामले की अगली सुनवाई में कोर्ट ECI से विस्तृत जवाब मांगेगा।