नई दिल्ली। भाजपा के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा को लेकर राजनीतिक हलचल तेज़ हो गई है। जेपी नड्डा के कार्यकाल के बाद पार्टी नए नेतृत्व के चयन की प्रक्रिया में है, और यह नियुक्ति आगामी लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर की जाएगी। सूत्रों के अनुसार, 15 या 16 मार्च तक भाजपा अपने नए अध्यक्ष का ऐलान कर सकती है।
भाजपा की रणनीति: दक्षिण भारत की ओर रुख?
भाजपा के भीतर जो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में हैं, वे दक्षिण भारत से जुड़े हुए हैं। आंध्र प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दग्गुबाती पुरंदेश्वरी और भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष वनती श्रीनिवासन प्रमुख दावेदार मानी जा रही हैं। भाजपा लंबे समय से दक्षिण भारत में अपना विस्तार करना चाहती है, और इसी वजह से यह संभावना जताई जा रही है कि इस बार पार्टी नेतृत्व किसी दक्षिण भारतीय चेहरे को आगे कर सकता है।
पुरंदेश्वरी को उनकी वाक्पटुता और पांच भाषाओं में दक्षता के कारण ‘दक्षिण की सुषमा स्वराज’ कहा जाता है, जबकि वनती श्रीनिवासन को पार्टी संगठन में काम करने का व्यापक अनुभव है। इसके अलावा, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, भूपेंद्र यादव, और विनोद तावड़े जैसे नाम भी रेस में बताए जा रहे हैं।
आरएसएस की भूमिका और जातीय समीकरण
भाजपा अध्यक्ष पद की नियुक्ति में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की भूमिका हमेशा से अहम रही है। पार्टी नेतृत्व के चयन में जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों का भी ध्यान रखा जाता है। इस बार यदि कोई दक्षिण भारतीय अध्यक्ष बनता है, तो यह भाजपा की 2024 लोकसभा चुनावों के लिए दक्षिण भारत में पैठ बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
इसके अलावा, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का नाम भी चर्चा में है, हालांकि उनकी उम्र और वर्तमान राजनीतिक समीकरण उन्हें कमजोर दावेदार बना सकते हैं।
क्या 2024 की रणनीति तय करेगी यह नियुक्ति?
भाजपा के लिए यह नियुक्ति केवल संगठनात्मक बदलाव नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संकेत भी होगा। अगर दक्षिण भारतीय नेता को अध्यक्ष बनाया जाता है, तो यह स्पष्ट होगा कि भाजपा अब उत्तर भारत की बजाय दक्षिण में अपनी स्थिति मजबूत करने पर ज्यादा ध्यान दे रही है।
अगले अध्यक्ष का चयन पार्टी के भविष्य की रणनीति को दर्शाएगा। भाजपा का नेतृत्व किन कारकों को प्राथमिकता देता है—चुनावी समीकरण, संगठनात्मक अनुभव, या आरएसएस की पसंद—इसका जवाब जल्द ही मिलने वाला है।