नई दिल्ली। मोदी सरकार ने प्रशासनिक नियुक्तियों में एक बड़ा बदलाव करते हुए युवा अधिकारियों को देश के अहम संस्थानों की कमान सौंपने की दिशा में मजबूत कदम उठाया है। यह परिवर्तन केवल एक रणनीतिक निर्णय नहीं, बल्कि एक दूरगामी दृष्टिकोण का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य प्रशासनिक कार्यकुशलता और प्रभावी शासन को नए आयाम देना है।
हाल ही में सरकार ने शीर्ष पदों पर कई महत्वपूर्ण नियुक्तियाँ की हैं, जो इस नई नीति को स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं।
मोदी सरकार की नई नियुक्तियाँ: युवा और ऊर्जावान नेतृत्व
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने हाल के दिनों में भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अपेक्षाकृत युवा और अनुभवी अधिकारियों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ सौंपी हैं। ये नियुक्तियाँ संकेत देती हैं कि सरकार अब पारंपरिक वरिष्ठता के बजाय क्षमता और कार्यकुशलता को प्राथमिकता दे रही है।
संजय मल्होत्रा (1990 बैच, राजस्थान कैडर) को भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) का गवर्नर बनाया गया।
संजय मूर्ति (1989 बैच, हिमाचल प्रदेश कैडर) को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) नियुक्त किया गया।
ज्ञानेश कुमार (1988 बैच, केरल कैडर) को मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की ज़िम्मेदारी दी गई।
विवेक जोशी (1989 बैच, हरियाणा कैडर) को चुनाव आयुक्त (EC) बनाया गया।
तुहिन कांता पांडे (1987 बैच, ओडिशा कैडर) को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) का प्रमुख नियुक्त किया गया।
युवा नेतृत्व क्यों?
मोदी सरकार की यह नीति बताती है कि पारंपरिक वरिष्ठता के बजाय प्रशासनिक दक्षता, नवाचार और गतिशील नेतृत्व को प्राथमिकता दी जा रही है। ये सभी अधिकारी न केवल अनुभवी हैं, बल्कि उन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य किया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस बदलाव के पीछे तीन प्रमुख कारण हैं:
1. नवाचार और नई सोच: युवा अधिकारियों में निर्णय लेने की तेज़ी और जटिल समस्याओं का समाधान खोजने की क्षमता अधिक होती है।
2. लंबे कार्यकाल का लाभ: अपेक्षाकृत कम आयु के अधिकारी अधिक वर्षों तक अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर सकते हैं, जिससे नीति-निरंतरता बनी रहती है।
3. तकनीकी और आर्थिक समझ: नई पीढ़ी के अधिकारी डिजिटल परिवर्तन, वैश्विक अर्थव्यवस्था और समकालीन प्रशासनिक चुनौतियों को बेहतर तरीके से समझते हैं।
मोदी सरकार का प्रशासनिक सुधार मॉडल
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने नौकरशाही में कई सुधार किए हैं। इनमें मिशन कर्मयोगी जैसी पहल शामिल हैं, जिसका उद्देश्य सिविल सेवाओं को अधिक दक्ष, पारदर्शी और उत्तरदायी बनाना है।
युवा अधिकारियों को शीर्ष पदों पर लाने का यह कदम भी इसी सुधारवादी दृष्टिकोण का हिस्सा है। इससे सरकार की निर्णय-प्रक्रिया अधिक प्रभावी होगी, और देश की प्रशासनिक मशीनरी पहले से अधिक चुस्त-दुरुस्त और परिणामोन्मुखी बन सकेगी।
राजनीतिक विरोध और हकीकत
हालांकि विपक्ष ने सरकार पर “अपनों को लाभ पहुंचाने” का आरोप लगाया है, लेकिन हकीकत यह है कि सभी नियुक्तियाँ योग्यता और कार्यकुशलता के आधार पर की गई हैं। ये अधिकारी पहले से ही महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं और उनके पास लंबा प्रशासनिक अनुभव है।
मोदी सरकार का यह निर्णय केवल प्रशासनिक फेरबदल नहीं, बल्कि एक स्पष्ट संकेत है कि अब भारत की नौकरशाही को एक नई दिशा दी जा रही है—जहाँ क्षमता और दक्षता को प्राथमिकता दी जाएगी। इन युवा अधिकारियों की नियुक्ति से आने वाले वर्षों में भारत की शासन प्रणाली और भी अधिक सशक्त, पारदर्शी और परिणाममुखी होने की संभावना है।