“ईगास बग्वाल हमारी सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतीक है” — डीएम प्रशांत आर्य

उत्तरकाशी में डीएम प्रशांत आर्य की पहल पर भव्य रूप से मनाया जाएगा ईगास बग्वाल

उत्तरकाशी, 28 अक्टूबर 2025 – जनपद उत्तरकाशी में इस वर्ष पारंपरिक उल्लास और लोक रंगों से सजा रहेगा ईगास बग्वाल पर्व। जिलाधिकारी प्रशांत आर्य के निर्देशन में 1 नवंबर 2025 को रामलीला मैदान में सांस्कृतिक और पारंपरिक कार्यक्रमों के साथ पर्व को वृहद स्तर पर मनाया जाएगा।

सायं 6 बजे से 7 बजे तक चलने वाले इस आयोजन में पारंपरिक लोकगीत, नृत्य और वाद्ययंत्रों की थाप पर उत्तराखंड की संस्कृति जीवंत होगी।


डीएम प्रशांत आर्य का दृष्टिकोण: परंपरा से जुड़ाव और युवाओं की भागीदारी

डीएम प्रशांत आर्य ने कहा, “ईगास बग्वाल हमारे राज्य की सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतीक है। यह पर्व हमारी लोक परंपराओं, सामूहिक एकता और पहचान को मजबूती देता है। इस आयोजन का उद्देश्य युवाओं को अपनी जड़ों से जोड़ना और स्थानीय कलाकारों को मंच देना है।”

उन्होंने बताया कि यह पर्व केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि हमारी सामूहिक लोक चेतना का उत्सव है, जिसे प्रशासन स्थानीय सहभागिता के साथ मनाएगा।


सांस्कृतिक संरक्षण का केंद्र बनेगा रामलीला मैदान

डीएम के निर्देशानुसार मुख्य विकास अधिकारी जय भरत सिंह को कार्यक्रम का नोडल अधिकारी नामित किया गया है। उन्होंने सभी जिला स्तरीय अधिकारियों को स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए हैं कि कार्यक्रम को पारंपरिक स्वरूप में, अनुशासित और समन्वित ढंग से सम्पन्न कराया जाए।


तैयारियों की डीएम कर रहे खुद निगरानी

ईगास पर्व की तैयारियाँ जिले में जोरों पर हैं। जिलाधिकारी प्रशांत आर्य स्वयं व्यवस्थाओं की नियमित समीक्षा कर रहे हैं। उन्होंने सुरक्षा, ट्रैफिक प्रबंधन और मंच सज्जा से लेकर स्थानीय कलाकारों की भागीदारी तक सभी पहलुओं का बारीकी से निरीक्षण किया है।


लोक संस्कृति का उत्सव बनेगा ईगास बग्वाल

इस आयोजन में पारंपरिक झुमेलो, जागर, बग्वाल गीत और लोकनृत्य प्रस्तुत किए जाएंगे। रामलीला मैदान लोकसंस्कृति के रंगों से सराबोर रहेगा और दर्शकों को उत्तराखंड की लोक आत्मा का अनुभव कराएगा।


जिलेवासियों से अपील

डीएम प्रशांत आर्य ने सभी नागरिकों से अपील की है कि वे पारंपरिक परिधानों में शामिल होकर इस सांस्कृतिक धरोहर को सम्मान दें। उन्होंने कहा कि “ईगास बग्वाल पर्व को लोक उत्सव के रूप में मनाकर हम आने वाली पीढ़ियों के लिए अपनी परंपराओं को सहेज सकते हैं।”

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