गंगा के पवित्र तट पर जब श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं, तो प्रशासनिक खामियां, अव्यवस्थाएं और भीड़ का शोर सबकुछ क्षणभर में विलीन हो जाता है। महाकुंभ 2025 अपने दिव्यता के चरम पर है— एक ऐसा महासंगम, जो 144 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद पुनः साकार हो रहा है।
करोड़ आस्था की डुबकी: अव्यवस्थाओं पर विजय
आधुनिकता के इस युग में जहां व्यवस्थाएं चुनौतीपूर्ण होती जा रही हैं, वहीं आस्था ने एक बार फिर अपने अपार बल से सभी अवरोधों को पराजित कर दिया है। प्रशासनिक दावों से इतर, श्रद्धालु यहां न सुविधाओं के बारे में सोच रहे हैं, न असुविधाओं से विचलित हो रहे हैं— वे बस गंगा की शीतल गोद में समर्पित हो रहे हैं, जैसे सदियों से होता आया है।
सड़कों पर भीड़ का रेला है, कई जगह अव्यवस्था भी दिखती है, लेकिन किसी के चेहरे पर शिकन नहीं। क्योंकि यहां आने वाला हर यात्री एक ही ध्येय लेकर आया है— आत्मशुद्धि, मोक्ष और ईश्वरीय कृपा की अनुभूति। इस कुम्भ में हर दिन लगभग लाखों श्रद्धालुओं द्वाराकी आस्था की डुबकी लगाई जा रही है, और यह कोई आर्थिक आंकड़ा नहीं, बल्कि आत्मीय ऊर्जा का परिमाण है।
144 वर्षों बाद पुनर्जागृत महाकुंभ: ईश्वरीय संयोग या दैवीय योजना?
महाकुंभ का यह विशेष स्वरूप 144 वर्षों के अंतराल के बाद प्रकट हुआ है। यह केवल संयोग नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक चक्र का पुनर्संचालन है। ऐसा मान्यता है कि जब ग्रह-नक्षत्रों का विशेष संयोग बनता है, तब ब्रह्मांड की ऊर्जा स्वयं इस पुण्यस्नान को महिमामंडित करने के लिए प्रवाहित होती है।
पद्म पुराण में उल्लेख है— “कुम्भे स्नानं प्रलयं तरणाय भवेत्” अर्थात, महाकुंभ का स्नान मात्र देह का शुद्धिकरण नहीं, आत्मा को भवसागर से पार लगाने का साधन है। यही कारण है कि साधु-संतों से लेकर आम जन तक, हर कोई इस अवसर को छोड़ना नहीं चाहता।
धर्म की धारा के समक्ष नतमस्तक आधुनिकता
आज जब दुनिया चकाचौंध और भौतिक सुख-सुविधाओं की ओर भाग रही है, तब यह महाकुंभ यह सिद्ध कर रहा है कि धर्म की शक्ति अब भी सर्वोपरि है। प्रशासन की तैयारियों पर सवाल उठ सकते हैं, अव्यवस्थाओं की लहरें उफान मार सकती हैं, लेकिन श्रद्धा की धारा उन सबको समेटकर अंततः गंगा में विलीन कर देती है।
कुम्भ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह संस्कृति का पुनर्जन्म है। यह आस्था का ऐसा पर्व है, जो हर बार यह साबित करता है कि भारत केवल भूगोल नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक ऊर्जा केंद्र है।
महाकुंभ का संदेश: अव्यवस्थाओं से ऊपर उठकर श्रद्धा का विजयघोष
महाकुंभ हमें यह सिखाता है कि जीवन में कितनी भी बाधाएं आएं, कितनी भी परेशानियां खड़ी हों, अगर विश्वास दृढ़ है, तो कुछ भी हमें ईश्वर से जोड़ने से रोक नहीं सकता। यहां आए श्रद्धालुओं ने इसे सिद्ध कर दिया है— वे अव्यवस्थाओं से नहीं लड़ रहे, वे सिर्फ अपने विश्वास की शक्ति से सबकुछ सहज बना रहे हैं।
144 वर्षों बाद आया यह महाकुंभ एक नई आध्यात्मिक चेतना को जागृत कर रहा है। यह केवल गंगा का संगम नहीं, बल्कि धर्म, संस्कृति और भारतीयता का संगम है। जब तक यह आस्था जीवित रहेगी, तब तक कोई अव्यवस्था, कोई कठिनाई, कोई बाधा इस पुण्य पर्व की दिव्यता को धूमिल नहीं कर सकती।
क्योंकि यहाँ केवल कुम्भ नहीं लग रहा, यहाँ भारत की आत्मा स्वयं साकार हो रही है।