- गंगा तट की पावन वेला, ऋषिकेश के दिव्य वातावरण में, आज एक ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बना — जब परमार्थ निकेतन में स्वामी चिदानंद सरस्वती जी महाराज के करकमलों द्वारा ऋषियों की अमरवाणी का आधिकारिक शुभारंभ हुआ।
सदियों से जिस भूमि ने वेद, उपनिषद और योग की ऋचाओं को जन्म दिया, वहीं से आज एक नयी आध्यात्मिक यात्रा आरंभ हुई — एक ऐसी यात्रा जो सनातन की अमर ज्योति को विश्वभर में प्रज्वलित करने का संकल्प है।

स्वामी चिदानंद सरस्वती जी महाराज का आशीर्वचन
शुभारंभ अवसर पर स्वामी चिदानंद सरस्वती जी ने अपने दिव्य वचनों से सभी साधकों को यह संदेश दिया:
“ऋषियों की वाणी केवल शब्द नहीं, चेतना है। इसे केवल पढ़ा नहीं जाता, इसे जिया जाता है। ‘ऋषियों की अमर वाणी’ सनातन संस्कृति की उस दिव्य धारा को पुनः प्रवाहित करने का माध्यम बने, यही मेरी शुभकामना है।”
स्वामी जी ने विशेष रूप से युवाओं को इस पहल से जुड़ने का आह्वान किया, यह बताते हुए कि ज्ञान, साधना और सेवा — यही सच्चा सनातन जीवन है। उनका प्रत्येक शब्द वातावरण को मंत्रमुग्ध कर गया और साधकों के हृदयों में ऊर्जा का संचार कर गया।
सुमन शर्मा द्वारा विशेष साक्षात्कार: A.I और R.I का संतुलन
शुभारंभ के बाद, ‘ऋषियों की अमर वाणी’ की आधिकारिक प्रतिनिधि सुमन शर्मा जी ने स्वामी चिदानंद सरस्वती जी महाराज का एक विशेष साक्षात्कार भी लिया।
इस दौरान स्वामी जी ने आधुनिक युग की चुनौती और समाधान दोनों को बड़े ही सरल और गहन शब्दों में समझाया।
स्वामी जी ने कहा:
“यह युग A.I — Artificial Intelligence — का युग है। लेकिन हमें इसे R.I — Rishi Intelligence — के साथ संतुलित करना होगा। मशीनों की बुद्धिमत्ता के साथ ऋषियों की चेतना आवश्यक है। तभी मानवता सच्ची दिशा में आगे बढ़ेगी।”
स्वामी जी के इन शब्दों ने उपस्थित साधकों और ऑनलाइन दर्शकों को गहरी प्रेरणा दी।
उन्होंने यह भी कहा कि ‘ऋषियों की अमर वाणी’ जैसे अभियानों के माध्यम से हम इस R.I — ऋषि चेतना — को पुनः जाग्रत कर सकते हैं, जिससे आधुनिक तकनीक भी मानवता की सेवा का साधन बन सके।
‘ऋषियों की अमर वाणी’ का उद्देश्य
‘ऋषियों की अमर वाणी’ एक आध्यात्मिक पहल है, जो वेदों, पुराणों, उपनिषदों, ऋषि-परंपराओं और सनातनी ज्ञान के गूढ़ रहस्यों को सरल, वैज्ञानिक और भावनात्मक ढंग से विश्वभर के पाठकों तक पहुँचाने का संकल्प लेकर आगे बढ़ रही है।
यह न केवल एक अध्ययन यात्रा है, बल्कि सनातन संस्कृति के पुनरुद्धार की एक दिव्य साधना भी है — जिसमें हर जिज्ञासु आत्मा को अपनी जड़ों से जुड़ने का अवसर मिलेगा।
परमार्थ निकेतन से उठी अमर ध्वनि
परमार्थ निकेतन — जहाँ गंगा की लहरों के साथ वेद-मंत्र गूँजते हैं, जहाँ साधना और सेवा जीवन का आधार है — से इस मिशन का शुभारंभ होना स्वयं में एक शुभ संकेत है। यह स्थल साक्षी रहा है अनगिनत संतों, महापुरुषों और साधकों की तपस्या का। आज इस तपोभूमि से ‘ऋषियों की अमर वाणी’ का उद्घोष हुआ, मानो गंगा की लहरों के साथ यह संदेश विश्व के कोने-कोने तक बह निकला।
सनातन की अमर यात्रा में आपका आमंत्रण
‘ऋषियों की अमर वाणी’ एक ऐसा ज्ञानयज्ञ है जिसमें हर साधक की आहुति आवश्यक है।
यह यात्रा केवल पठन या अध्ययन तक सीमित नहीं, बल्कि अनुभव, साधना और आत्मसाक्षात्कार का माध्यम है।
आइए, इस पावन प्रयास का भाग बनें।
ऋषियों के स्वरों को फिर से जीवंत करें।
अपनी चेतना को अमर वाणी से आलोकित करें।
‘ऋषियों की अमर वाणी’ से जुड़ने हेतु अधिक जानकारी के लिए वेबसाइट अथवा सोशल मीडिया पेज पर अवश्य पधारें।