मुंबई: भारत के सबसे चर्चित और विवादास्पद आतंकी मामलों में से एक — 2008 मालेगांव ब्लास्ट केस — में NIA कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। करीब 18 साल चली लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, कोर्ट ने यह कहते हुए फैसला सुनाया कि मामले में पर्याप्त सबूत नहीं हैं और UAPA जैसे सख्त कानून का दुरुपयोग हुआ है।
कोर्ट का बड़ा बयान:
विशेष NIA कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा:
- कर्नल श्रीकांत पुरोहित के घर से RDX मिलने का कोई सबूत नहीं है।
- जिस मोटरसाइकिल का इस्तेमाल विस्फोट में हुआ, उसके मालिकाना हक को लेकर साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पर कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है।
- पूरे मामले में सबूतों की कमी के कारण अभियोजन आरोप सिद्ध करने में विफल रहा।
कौन-कौन थे आरोपी:
- कर्नल पुरोहित – सेना के इंटेलिजेंस अफसर थे, जिनपर आतंकी संगठन बनाने का आरोप लगा था।
- साध्वी प्रज्ञा ठाकुर – वर्तमान में बीजेपी सांसद, जिनके वाहन को धमाके में इस्तेमाल किए जाने का दावा किया गया था।
- स्वामी असीमानंद, समीर कुलकर्णी, और अन्य कार्यकर्ता – जिनपर हिन्दू आतंकवाद का चेहरा बताया गया था।
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का यू-टर्न:
एक समय RSS पर आतंकवाद के आरोप लगाने वाले माने जाने वाले कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने इस फैसले के बाद कहा:
“मैंने कभी मुंबई में हुए किसी भी आतंकी हमले में RSS की संलिप्तता का आरोप नहीं लगाया है।”
उनका यह बयान सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में तीखी प्रतिक्रिया का कारण बन गया है।
क्या था मालेगांव ब्लास्ट?
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव शहर में एक मोटरसाइकिल में विस्फोट हुआ था, जिसमें 6 लोगों की मौत और दर्जनों घायल हुए थे। इस धमाके को पहले हिन्दू आतंकवाद की संज्ञा दी गई और UAPA के तहत केस दर्ज किया गया।
फैसले के मायने:
- सियासी गलियारों में हलचल: यह मामला लंबे समय से राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल होता रहा है।
- NIA की जांच पर सवाल: कोर्ट के फैसले के बाद अब जांच एजेंसियों की निष्पक्षता और दक्षता पर भी प्रश्नचिह्न खड़े हो रहे हैं।
- UAPA के दुरुपयोग की बहस: कठोर आतंकवाद विरोधी कानून का इस तरह उपयोग और फिर आरोपियों का बरी होना भारत की न्याय प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है।