उत्तराखंड सचिवालय में वर्षों से जमे अफसर-कर्मचारियों को हटाने और सिस्टम में पारदर्शिता लाने के लिए लाई गई तबादला नीति खुद ही सवालों के घेरे में आ गई है। तय समयसीमा 31 जुलाई बीतने के बावजूद एक भी तबादला नहीं किया गया। इससे न केवल सचिवालय प्रशासन की गंभीरता पर सवाल खड़े हो रहे हैं, बल्कि यह पूरा मामला तबादला नीति को ‘दिखावा’ साबित करने जैसा प्रतीत हो रहा है।
✅ नई नीति का ढोल, पर ज़मीनी हकीकत सन्नाटा
सचिवालय तबादला नीति हाल ही में लागू की गई थी, जिससे उम्मीद जगी थी कि वर्षों से एक ही कुर्सी पर टिके अधिकारी-कर्मचारी अब इधर-उधर होंगे और सिस्टम में नई ऊर्जा व पारदर्शिता आएगी। नीति के अनुसार, अनुभाग अधिकारी से लेकर संयुक्त सचिव, समीक्षा अधिकारी, सहायक समीक्षा अधिकारी और कंप्यूटर सहायकों का वार्षिक स्थानांतरण हर साल 31 जुलाई तक होना था।
लेकिन 31 जुलाई की रात बीत गई, और कोई स्थानांतरण आदेश तक जारी नहीं हुआ। इससे यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या यह नीति केवल कागज़ी खानापूर्ति थी?
🗓 हर साल 1 अप्रैल होगी कटऑफ डेट, फिर भी शून्य तबादले!
नीति के मुताबिक, हर साल 1 अप्रैल को तैनाती की अवधि का निर्धारण होगा और कोई भी अफसर 5 साल से ज्यादा एक ही विभाग में नहीं रह सकेगा। इसके बावजूद, न तबादलों की सूची बनी, न ही किसी को कार्यमुक्त किया गया।
🔍 बिना प्रतिस्थानी के भी कार्यभार ग्रहण करना था ज़रूरी
नीति में स्पष्ट किया गया था कि तबादला आदेश जारी होते ही अधिकारी को तीन दिन के भीतर नई तैनाती पर कार्यभार संभालना होगा, चाहे प्रतिस्थानी उपलब्ध हो या नहीं। लेकिन जब आदेश ही नहीं निकले, तो सवाल यही है — क्या सचिवालय खुद अपनी नीतियों को ताक पर रख रहा है?
⚠️ फिक्स सीट सिंडिकेट पर शिकंजा या दिखावा?
वर्षों से सचिवालय में ‘फिक्स सीट सिंडिकेट’ की चर्चा रही है, जहां कुछ अधिकारी महत्वपूर्ण फाइलों और कुर्सियों पर जमे रहते हैं। तबादला नीति को इसी सिंडिकेट पर चोट माना जा रहा था, लेकिन अब जब नीति लागू होने के बावजूद कोई कदम नहीं उठाया गया, तो यह आशंका भी बलवती हो गई है कि कहीं यह नीति भी उन्हीं के दबाव में ठंडे बस्ते में न चली गई हो।
❓ प्रशासन की चुप्पी, सवालों का पहाड़
सबसे बड़ी बात यह है कि सचिवालय प्रशासन ने न तो कोई स्पष्टीकरण जारी किया है और न ही यह बताया है कि तबादले क्यों नहीं किए गए। क्या दबाव था? क्या फाइलें रोक दी गईं? या फिर अफसरशाही ने नीति को ही धता बता दी?
अब निगाहें मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और मुख्य सचिव की ओर हैं कि क्या वे इस मामले पर सख्ती से कार्रवाई करेंगे या यह मुद्दा भी बाकी घोषणाओं की तरह केवल एक ‘प्रेसनोट’ बनकर रह जाएगा?