नई दिल्ली।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक और बहुचर्चित मुद्दे पर सुनवाई करने का फैसला किया है, जो देश की आरक्षण व्यवस्था की बुनियाद को हिला सकता है। मामला है SC/ST आरक्षण में आय-आधारित प्राथमिकता लागू करने का, यानी ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा को इन वर्गों में भी लागू करने का। इस फैसले पर सहमति जताते ही देशभर में बहस का दौर शुरू हो गया है।
क्या है मामला ?
याचिका में कहा गया है कि SC/ST आरक्षण का लाभ अक्सर उन्हीं परिवारों को बार-बार मिल रहा है, जो पहले से ही आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत हो चुके हैं। नतीजतन, असली जरूरतमंद—गांवों में रह रहे, बेहद गरीब और हाशिए पर बसे लोग—आरक्षण के फायदे से वंचित रह जाते हैं।
याचिकाकर्ता की मांग है कि जिस तरह OBC आरक्षण में ‘क्रीमी लेयर’ का नियम लागू है, वैसा ही SC/ST में भी हो। इसका मतलब यह होगा कि एक तय आय सीमा से ऊपर के परिवार आरक्षण का लाभ नहीं ले पाएंगे।
अगर सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर हरी झंडी दे देता है, तो देश में आरक्षण का स्वरूप ही बदल सकता है—
- समानता का नया पैमाना: आरक्षण का फायदा उन तक पहुँचेगा, जिन्हें सच में इसकी जरूरत है।
- पारदर्शिता में बढ़ोतरी: ‘क्रीमी लेयर’ के लागू होने से यह स्पष्ट होगा कि कौन वंचित है और कौन नहीं।
- राजनीतिक हलचल: इस पर फैसला आते ही कई दल खुलकर समर्थन या विरोध में उतर सकते हैं।
- कानूनी पेच: आय सीमा तय करने और इसे लागू करने की प्रक्रिया सबसे बड़ी चुनौती होगी।
राजनीतिक और सामाजिक असर
यह कदम सिर्फ एक कानूनी सुधार नहीं होगा, बल्कि यह सामाजिक न्याय की दिशा में एक नया मोड़ होगा। लेकिन साथ ही यह राजनीतिक बम भी साबित हो सकता है। कुछ वर्ग इसे ऐतिहासिक सुधार कहेंगे, तो कुछ इसे आरक्षण के मूल सिद्धांत पर हमला मानेंगे।
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम सिर्फ शुरुआत है। आने वाले महीनों में इस पर तेज कानूनी जिरह होगी। सरकार, याचिकाकर्ता और प्रभावित समुदाय अपनी-अपनी दलीलें पेश करेंगे।
सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या भारत के न्याय इतिहास में एक नया अध्याय लिखा जाएगा और SC/ST आरक्षण में ‘क्रीमी लेयर’ का अध्याय जोड़ा जाएगा।