वृंदावन का नाम लेते ही मन में राधा-कृष्ण की लीलाओं, मधुर भजनों और मंदिरों की घंटियों की ध्वनि गूंजने लगती है। यहां के श्रीबांके बिहारी मंदिर की महिमा जगजाहिर है। हजारों-लाखों भक्त सालभर यहां दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन एक परंपरा ऐसी है जो पूरे वर्ष में केवल एक बार निभाई जाती है—मंगला आरती।
श्रीबांके बिहारी जी के मंदिर में सामान्य दिनों में मंगला आरती नहीं होती। इसका कारण भक्त और भगवान के बीच का अद्भुत भाव-संपर्क है। मान्यता है कि बिहारीजी का बाल स्वरूप अत्यंत चंचल और मनमोहक है। वे अपने भक्तों के प्रेम में इतने रच-बस जाते हैं कि यदि उन्हें प्रातःकाल उठाकर आरती की जाए तो वे भावावेश में भक्तों के साथ ही चल पड़ें। इसी कारण मंदिर परंपरा में केवल एक विशेष दिन ही मंगला आरती की जाती है।
इस दिन मंदिर का वातावरण अलौकिक हो जाता है। गर्भगृह को पुष्पों और दीपों से सजाया जाता है, वातावरण में केसर और चंदन की महक फैल जाती है, और भोर की मंद हवा में राधा-कृष्ण के भजन गूंजते हैं। पुजारी परंपरागत वैष्णव विधि से प्रभु को जगाते हैं और पंचामृत स्नान के बाद मंगला आरती संपन्न होती है। इस आरती के दौरान घंटियों और शंखनाद की ध्वनि में पूरा मंदिर परिसर भक्तिरस में डूब जाता है।
मंदिर की एक और विशिष्ट परंपरा है—पर्दा डालना। दर्शन के समय बीच-बीच में भगवान के सामने पर्दा किया जाता है। शास्त्रों और स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, प्रभु का मोहक स्वरूप इतना आकर्षक है कि भक्त उन्हें देखकर समाधि में लीन हो सकते हैं, और स्वयं बिहारीजी भी भक्तों की प्रेम-भक्ति से वशीभूत होकर उनके साथ जाने को तैयार हो सकते हैं। यह पर्दा इसी भावनात्मक प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए लगाया जाता है।
अब सवाल यह है कि साल में केवल एक बार होने वाली यह दिव्य मंगला आरती कब होगी?
तो भक्तजन ध्यान दें—यह अद्वितीय आरती जन्माष्टमी के पावन अवसर पर, इस वर्ष 16 अगस्त की भोर 3:30 बजे संपन्न होगी। इस समय प्रभु के दर्शन का सौभाग्य पाने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु वृंदावन पहुंचते हैं, और यह क्षण उनके जीवन का सबसे अमूल्य अनुभव बन जाता है।