लद्दाख इन दिनों तनाव और सनसनी के भंवर में फंसा हुआ है। 10 सितंबर 2025 को सोनम वांगचुक ने छठी अनुसूची और राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर भूख हड़ताल शुरू की थी। सरकार का कहना है कि इन्हीं मुद्दों पर भारत सरकार पहले से ही Apex Body Leh और Kargil Democratic Alliance के साथ गहन बातचीत कर रही थी। उच्चाधिकार प्राप्त समिति (HPC) और उसकी उप-समितियों के जरिए कई दौर की चर्चाओं ने पहले ही लद्दाख को बड़े फायदे दिलाए थे।
सरकार की ओर से मिली ऐतिहासिक उपलब्धियां
इस प्रक्रिया के तहत अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण 45% से बढ़ाकर 84% किया गया। परिषदों में महिलाओं को एक-तिहाई आरक्षण मिला और भोटी व पुर्गी भाषाओं को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया। इसके साथ ही, 1800 पदों पर भर्ती प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई।
लेकिन संवाद के बीच भड़की राजनीति
सरकारी बयान के मुताबिक, कुछ राजनीतिक रूप से प्रेरित लोग इस प्रगति से खुश नहीं थे और उन्होंने संवाद प्रक्रिया को विफल करने की कोशिश की। HPC की अगली बैठक 6 अक्टूबर को निर्धारित है, जबकि 25 और 26 सितंबर को भी नेताओं के साथ अहम बैठकें तय थीं। इसी बीच, सोनम वांगचुक ने भूख हड़ताल जारी रखते हुए अरब स्प्रिंग और नेपाल में Gen Z प्रदर्शनों का हवाला देकर लोगों को भड़काया।
24 सितंबर को हिंसा में बदला आंदोलन
24 सितंबर की सुबह 11:30 बजे, भूख हड़ताल स्थल पर जुटी भीड़ अचानक उग्र हो गई। भीड़ ने लेह में एक राजनीतिक दल के दफ्तर और CEC के सरकारी कार्यालय पर हमला बोल दिया। दफ्तरों को आग के हवाले किया गया, सुरक्षाकर्मियों पर हमला हुआ और एक पुलिस वाहन भी जला दिया गया।
स्थिति इतनी बिगड़ी कि पुलिस और CRPF के 30 से ज्यादा जवान घायल हो गए। हालात काबू से बाहर होते देख पुलिस को आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी। इसमें कुछ लोगों की मौत की खबर है।
शाम तक हालात काबू में
सरकार ने बताया कि सुबह हुई इन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के बाद शाम 4 बजे तक स्थिति नियंत्रण में आ गई। इस पूरे घटनाक्रम के बीच सोनम वांगचुक ने अचानक अपना उपवास तोड़ दिया और एम्बुलेंस से अपने गांव रवाना हो गए।
सरकार का रुख
गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि लद्दाख के लोगों की आकांक्षाओं को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। मंत्रालय ने लोगों से अपील की है कि पुराने या भड़काऊ वीडियो सोशल मीडिया पर साझा न करें ताकि स्थिति और न बिगड़े।
लद्दाख में हुए इस घटनाक्रम ने पूरे देश का ध्यान खींचा है। सवाल यह भी है कि जब संवाद और समाधान की राह पर सरकार और स्थानीय नेतृत्व आगे बढ़ रहे थे, तब आखिर क्यों हिंसा की राह चुनी गई?