इंदौर। दशहरे से पहले इंदौर हाईकोर्ट ने एक बड़ा और संवेदनशील फैसला सुनाते हुए महिलाओं के पुतलों के दहन पर तत्काल रोक लगा दी है। अदालत ने कहा कि किसी भी परिस्थिति में महिला चरित्रों के पुतले जलाना असंवैधानिक, असंवेदनशील और समाज में गलत संदेश देने वाला है।
मामला कैसे शुरू हुआ
जानकारी के अनुसार, इंदौर की ‘पौरुष’ नामक संस्था इस वर्ष दशहरे पर परंपरागत रावण दहन की बजाय महिला चरित्रों के पुतले जलाने की योजना बना रही थी। इसमें शूर्पणखा समेत कुछ अन्य महिला चरित्रों का पुतला दहन करने की तैयारी थी। इस सूची में सोनम रघुवंशी नामक युवती का नाम भी जोड़ा गया था, जिससे विवाद और गहरा गया।
इस घटना से आहत होकर सोनम की मां संगीता रघुवंशी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उन्होंने कहा कि यह कदम न केवल व्यक्तिगत अपमान है, बल्कि पूरे समाज की महिलाओं के सम्मान और गरिमा पर चोट है।
कोर्ट का कड़ा रुख
याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि “किसी भी महिला का पुतला दहन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह कृत्य न केवल महिलाओं की गरिमा का उल्लंघन है बल्कि त्योहारों की आत्मा और सांस्कृतिक मूल्यों के भी विपरीत है।”
अदालत ने स्पष्ट किया कि दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है। ऐसे में महिलाओं के पुतले जलाना इस पावन परंपरा को विकृत करने जैसा है।
प्रशासन हुआ सख्त
फैसले के बाद जिला प्रशासन और पुलिस ने कमर कस ली है। कोर्ट के आदेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए सभी संवेदनशील क्षेत्रों में निगरानी बढ़ा दी गई है। पुलिस ने चेतावनी दी है कि यदि कोई संस्था या व्यक्ति इस आदेश का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
समाज में संदेश
हाईकोर्ट का यह फैसला केवल एक धार्मिक आयोजन को लेकर ही नहीं, बल्कि समाज में महिलाओं की स्थिति और उनके सम्मान को लेकर भी एक महत्वपूर्ण संदेश देता है। यह निर्णय बताता है कि त्योहारों को हमेशा उनकी मूल भावना—बुराई पर अच्छाई की जीत—के अनुरूप ही मनाया जाना चाहिए, न कि महिलाओं के अपमान के सहारे।
यह आदेश उस समय आया है जब देशभर में महिला सुरक्षा और सम्मान पर लगातार चर्चाएं हो रही हैं। इसने एक स्पष्ट दिशा दी है कि परंपराओं के नाम पर किसी भी तरह का महिला विरोधी संदेश बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।