देहरादून। भारत की अग्रणी तकनीकी संस्था IIT रुड़की ने एक ऐसा नवाचार किया है जो एक साथ प्लास्टिक प्रदूषण और पराली जलाने की दोहरी चुनौती का समाधान लेकर आया है। संस्थान की इनोपैप लैब (Innovation in Paper & Packaging Lab) ने औरंगाबाद स्थित पैरासन मशीनरी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ मिलकर गेहूँ के भूसे से बायोडिग्रेडेबल और कम्पोस्टेबल टेबलवेयर (जैसे प्लेट, बाउल, कप आदि) तैयार किया है, जो पूरी तरह खाद्य-सुरक्षित और पर्यावरण-अनुकूल है।
🌱 मिट्टी से मिट्टी तक – नवाचार का नया दर्शन
इस तकनीक का मूल विचार “मिट्टी से मिट्टी तक” है — यानी, उत्पाद जो धरती से उत्पन्न हो और उपयोग के बाद दोबारा धरती में विलीन हो जाए। यह न केवल पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित है बल्कि भारत को एकल-उपयोग प्लास्टिक पर निर्भरता से मुक्त करने की दिशा में बड़ा कदम है।
🔬 वैज्ञानिक सोच, व्यावहारिक समाधान
इस परियोजना का नेतृत्व कागज़ प्रौद्योगिकी विभाग के प्रो. विभोर के. रस्तोगी ने किया। उन्होंने बताया कि यह शोध दर्शाता है कि किस प्रकार रोज़मर्रा के कृषि अपशिष्ट, विशेषकर भूसे जैसे पदार्थ, को उच्च-गुणवत्ता वाले टिकाऊ उत्पादों में बदला जा सकता है।
भारत में हर साल लगभग 35 करोड़ टन कृषि अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिसका बड़ा हिस्सा जला दिया जाता है — जिससे वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता है। यह नवाचार किसानों को अतिरिक्त आय का साधन प्रदान करते हुए अपशिष्ट को संपदा में बदलने का रास्ता दिखाता है।
🧩 “लैब से मार्केट” की ओर
इस प्रोजेक्ट की खासियत यह है कि यह सिर्फ प्रयोगशाला तक सीमित नहीं है। पैरासन मशीनरी के साथ उद्योग साझेदारी के ज़रिए इस तकनीक को व्यावसायिक उपयोग तक पहुँचाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं।
आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो. कमल किशोर पंत के शब्दों में, “यह नवाचार समाज की वास्तविक चुनौतियों का समाधान करने की हमारी प्रतिबद्धता का प्रमाण है। यह स्वच्छ भारत, मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियानों को मज़बूती देता है।”
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👩🔬 युवाओं की भूमिका – नवाचार के नायक
इस प्रोजेक्ट में जैस्मीन कौर (पीएचडी छात्रा) और डॉ. राहुल रंजन (पोस्ट-डॉक्टरल शोधकर्ता) ने टेबलवेयर के विकास में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने यह दिखाया कि कैसे युवा वैज्ञानिक और शोधकर्ता सतत विकास की दिशा में देश के भविष्य को आकार दे सकते हैं।
🌍 SDG लक्ष्यों के अनुरूप कदम
IIT रुड़की की यह पहल न केवल राष्ट्रीय मिशनों का समर्थन करती है, बल्कि संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के अनुरूप भी है — विशेष रूप से
- SDG 12: जिम्मेदार उपभोग और उत्पादन
- SDG 13: जलवायु कार्रवाई
यह प्रोजेक्ट भारत को स्वच्छ, स्वस्थ और आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ “हर खेत से हर घर तक” हरित विकास की एक प्रेरक मिसाल बनकर उभर रहा है।