डीएम उत्तरकाशी प्रशांत कुमार आर्य बने जनता की आवाज़ — अब ‘फोन न उठाने’ वाले बाबुओं की खैर नहीं!

जनता की परेशानी पर प्रशासन की सर्जिकल स्ट्राइक

उत्तरकाशी, 29 अक्टूबर 2025 —
जब सरकारी बाबुओं की सुस्ती और फोन न उठाने की पुरानी आदत जनता के सब्र को तोड़ने लगी, तब ज़िले के कप्तान डीएम प्रशांत कुमार आर्य ने अपनी पहचान एक सख्त, जवाबदेह और जन-केंद्रित अफसर के रूप में दर्ज करा दी।
डीएम आर्य ने सोमवार को एक कड़ा कार्यालय आदेश जारी करते हुए उन सभी जिला व खंड स्तरीय अधिकारियों को साफ चेतावनी दी है जो जनप्रतिनिधियों या आम नागरिकों के फोन तक नहीं उठाते।

यह कदम अब प्रशासनिक हलकों में “उत्तरकाशी मॉडल” के नाम से चर्चा में है — क्योंकि ये सिर्फ़ एक आदेश नहीं, बल्कि जवाबदेही की नई परिभाषा है।


कैसे उठा मुद्दा — जनता के सब्र का बाँध टूटा

पर्वतीय जनपद उत्तरकाशी में शिकायतों का निवारण वैसे ही कठिन होता है। दूरस्थ गांवों से लोग घंटों की दूरी तय कर मुख्यालय पहुँचते हैं, और जब अधिकारी फोन तक न उठाएँ तो निराशा बढ़ना स्वाभाविक है।
डीएम आर्य के संज्ञान में यह तथ्य आया कि कई अधिकारी न तो फोन रिसीव कर रहे हैं, न ही शिकायतों का त्वरित समाधान कर रहे हैं
जनता और जनप्रतिनिधियों को मजबूरी में दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ रहे थे। यही वह बिंदु था जब डीएम आर्य ने तय किया — अब जवाबदेही सिर्फ़ कागज़ों में नहीं, व्यवहार में दिखनी चाहिए।


डीएम का सख्त आदेश — ‘फोन उठाओ, नहीं तो कुर्सी छूटेगी’

अपने आदेश में जिलाधिकारी प्रशांत कुमार आर्य ने कहा है कि

“अधिकारियों का यह रवैया जनता की शिकायतों के प्रति संवेदनहीनता और लापरवाही का प्रतीक है। अब किसी भी तरह की पुनरावृत्ति बर्दाश्त नहीं की जाएगी।”

साथ ही उन्होंने निर्देश दिया है कि

  1. सभी अधिकारी जनप्रतिनिधियों और नागरिकों के फोन अवश्य रिसीव करें।
  2. शिकायतें आने पर तत्काल कार्रवाई सुनिश्चित करें।
  3. यदि किसी अधिकारी पर बार-बार ऐसी शिकायत आई, तो उसके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही की जाएगी और कड़ी संस्तुति की जाएगी।

यानी साफ संदेश — “अब फोन न उठाने वालों के दिन गए।”


जनता के लिए ‘आशा की नई किरण’

इस आदेश ने पहाड़ की जनता में नई उम्मीद जगाई है।
जहाँ लोग पहले अपनी आवाज़ दबाकर लौट आते थे, अब उन्हें लगने लगा है कि प्रशासन में भी कोई है जो उनकी सुनता है।
डीएम आर्य की यह पहल न केवल जनता को प्रशासन से जोड़ रही है, बल्कि एक मानव-केंद्रित गवर्नेंस मॉडल की ओर इशारा कर रही है — जहाँ ‘संवेदनशीलता’ ही असली प्रशासनिक ताकत है।

ग्राम प्रधान से लेकर जिला पंचायत सदस्य तक इस कदम का स्वागत कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोग डीएम की इस कार्रवाई को “फोन उठाओ मिशन” और “जनता का डीएम” कहकर सराह रहे हैं।


क्यों अलग हैं प्रशांत कुमार आर्य

उत्तरकाशी के डीएम प्रशांत कुमार आर्य पहले भी अपने प्रो-एक्टिव प्रशासन और फील्ड विज़िट्स के लिए चर्चा में रहे हैं।
वे लगातार यह संदेश देते रहे हैं कि अधिकारी और जनता के बीच संवाद की दीवारें तोड़नी होंगी।
उनकी कार्यशैली पारदर्शिता, तकनीक और मानवीय संवेदना के मेल का उदाहरण है।

उनके इस आदेश ने न केवल अधिकारियों को चेताया है, बल्कि यह भी साबित किया है कि उत्तरकाशी में प्रशासन अब कुर्सियों से नहीं, कर्मों से चल रहा है।

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