लोक भवन में AI को लेकर महत्वपूर्ण संवाद
लोक भवन सूचना परिसर, देहरादून में शनिवार को एक महत्वपूर्ण वैचारिक संवाद का आयोजन हुआ, जहां भारत में विकसित स्वदेशी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पहल ‘भारत-जेन’ को लेकर गहन चर्चा की गई। यह शिष्टाचार भेंट राज्यपाल और आईआईटी मुंबई के प्रोफेसर गणेश रामकृष्णन के बीच हुई, जिसमें भारत की तकनीकी दिशा, नवाचार की संस्कृति और एआई के सामाजिक प्रभाव जैसे विषयों पर विस्तार से विचार-विमर्श हुआ।
इस अवसर पर दून विश्वविद्यालय की कुलपति सुरेखा डंगवाल भी उपस्थित रहीं, जिससे यह संवाद केवल एक औपचारिक मुलाकात न रहकर अकादमिक, तकनीकी और नीतिगत दृष्टिकोणों का संगम बन गया।
भारत-जेन: केवल तकनीक नहीं, एक वैचारिक आंदोलन
भारत-जेन को केवल एक तकनीकी प्लेटफॉर्म के रूप में नहीं, बल्कि एक वैचारिक आंदोलन के रूप में देखा जा रहा है। यह पहल भारत को वैश्विक एआई परिदृश्य में केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि निर्माता और दिशा-निर्देशक के रूप में स्थापित करने का प्रयास है।
राज्यपाल ने बातचीत के दौरान स्पष्ट किया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आने वाले समय में शासन, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और उद्योग जैसे क्षेत्रों की कार्यप्रणाली को पूरी तरह बदलने की क्षमता रखता है। ऐसे में यदि भारत अपनी आवश्यकताओं, भाषाओं, सामाजिक संरचना और सांस्कृतिक संदर्भों के अनुरूप एआई विकसित करता है, तो उसका प्रभाव कहीं अधिक गहरा और स्थायी होगा।
विकसित भारत के लक्ष्य में AI की भूमिका
राज्यपाल ने कहा कि विकसित भारत का सपना केवल आर्थिक प्रगति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक समावेशन, ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था और तकनीकी आत्मनिर्भरता भी शामिल है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इस लक्ष्य को हासिल करने का एक सशक्त माध्यम बन सकता है।
उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि यदि एआई को केवल आयातित तकनीक के रूप में अपनाया गया, तो भारत उसकी सीमाओं और पूर्वाग्रहों से बंधा रहेगा। इसके विपरीत, भारत-जेन जैसी स्वदेशी पहल भारत को अपने डेटा, अपने संदर्भ और अपनी प्राथमिकताओं के अनुरूप समाधान विकसित करने का अवसर देती है।
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भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिक कंप्यूटिंग
इस संवाद का एक महत्वपूर्ण पहलू भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिक कंप्यूटिंग के बीच संबंध रहा। राज्यपाल ने कहा कि भारत की दार्शनिक परंपराएं, संस्कृत भाषा, वेद-पुराण और तर्कशास्त्र में पहले से ही ऐसी संरचनाएं मौजूद हैं, जो आधुनिक एल्गोरिद्म और एआई मॉडल से स्वाभाविक रूप से मेल खाती हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय ग्रंथों में मौजूद कारण-कार्य संबंध, तर्क, अनुमान और निर्णय की प्रक्रियाएं एआई के मूल सिद्धांतों से बहुत दूर नहीं हैं। भारत-जेन जैसी पहल इन दोनों दुनियाओं को जोड़ने का कार्य कर सकती है, जहां परंपरा और तकनीक एक-दूसरे के पूरक बनें।
AI को जड़ों से जोड़ने की आवश्यकता
राज्यपाल ने इस बात पर विशेष जोर दिया कि एआई को भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक जड़ों से जोड़ना समय की आवश्यकता है। भारत विविधताओं का देश है—भाषा, बोली, जीवनशैली और सोच के स्तर पर। यदि एआई इन विविधताओं को समझने और सम्मान देने में सक्षम होगा, तभी वह वास्तव में जनोपयोगी बन सकेगा।
भारत-जेन का उद्देश्य ऐसे एआई मॉडल विकसित करना है जो भारतीय भाषाओं, स्थानीय संदर्भों और जमीनी समस्याओं को समझ सकें। यह दृष्टिकोण भारत को वैश्विक एआई दौड़ में एक अलग और मजबूत पहचान दिला सकता है।
सरल प्रस्तुतीकरण, गहन विषय
प्रोफेसर गणेश रामकृष्णन द्वारा प्रस्तुत किया गया प्रस्तुतीकरण चर्चा का केंद्र रहा। राज्यपाल ने उनकी सराहना करते हुए कहा कि जटिल तकनीकी विषयों को सरल, स्पष्ट और व्यावहारिक उदाहरणों के माध्यम से प्रस्तुत करना ही किसी भी नवाचार को समाज तक पहुंचाने का सही तरीका है।
प्रस्तुतीकरण में भारत-जेन के तकनीकी ढांचे, इसके संभावित उपयोग क्षेत्रों और भविष्य की दिशा पर विस्तार से प्रकाश डाला गया। शिक्षा, प्रशासन, स्वास्थ्य सेवाओं और स्थानीय शासन में इसके संभावित प्रयोगों को विशेष रूप से रेखांकित किया गया।
उपभोक्ता से निर्माता बनने का आह्वान
प्रोफेसर गणेश रामकृष्णन ने कहा कि भारत-जेन का मूल उद्देश्य हर भारतीय को तकनीक का केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि उसका निर्माता बनाना है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जब तक समाज तकनीक को केवल इस्तेमाल करने तक सीमित रहेगा, तब तक वह उसके प्रभाव, सीमाओं और संभावनाओं को पूरी तरह समझ नहीं पाएगा।
उन्होंने यह भी कहा कि एआई के प्रति जिज्ञासा, सीखने की इच्छा और सकारात्मक दृष्टिकोण ही नवाचार को जन्म देते हैं। भारत-जेन इसी मानसिकता को बढ़ावा देने का प्रयास है, जहां युवा, शोधकर्ता और आम नागरिक तकनीक के निर्माण की प्रक्रिया में सक्रिय भागीदार बन सकें।
शिक्षा और विश्वविद्यालयों की भूमिका
इस अवसर पर उच्च शिक्षण संस्थानों की भूमिका पर भी चर्चा हुई। दून विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों को स्थानीय नवाचार, शोध और कौशल विकास के केंद्र के रूप में विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
एआई जैसे उभरते क्षेत्रों में यदि विश्वविद्यालय, उद्योग और सरकार मिलकर काम करें, तो भारत वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी समाधान विकसित कर सकता है। भारत-जेन इस सहयोगी मॉडल का एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन सकता है।
उत्तराखंड और तकनीकी नवाचार
उत्तराखंड जैसे राज्यों के लिए भी भारत-जेन जैसी पहल नई संभावनाओं के द्वार खोलती है। पर्वतीय राज्य होने के कारण यहां शिक्षा, स्वास्थ्य और प्रशासन में तकनीकी समाधान विशेष रूप से उपयोगी साबित हो सकते हैं।
स्थानीय भाषाओं में एआई आधारित सेवाएं, दूरस्थ क्षेत्रों में डिजिटल पहुंच और स्मार्ट गवर्नेंस जैसे क्षेत्रों में भारत-जेन के प्रयोग भविष्य में नई दिशा दे सकते हैं।
वैश्विक परिदृश्य में भारत-जेन की अहमियत
आज जब दुनिया के बड़े देश एआई को रणनीतिक शक्ति के रूप में देख रहे हैं, ऐसे समय में भारत-जेन भारत को अपनी शर्तों पर आगे बढ़ने का अवसर देता है। यह पहल भारत को केवल तकनीकी प्रतिस्पर्धा में शामिल नहीं करती, बल्कि उसे एक वैकल्पिक और मानवीय मॉडल प्रस्तुत करने की क्षमता भी देती है।
भारत-जेन का फोकस केवल दक्षता और गति पर नहीं, बल्कि समावेशन, नैतिकता और सांस्कृतिक समझ पर भी है—जो इसे वैश्विक मंच पर अलग पहचान दिला सकता है।
भविष्य की दिशा
लोक भवन में हुई यह चर्चा संकेत देती है कि भारत में एआई को लेकर सोच अब केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं रही। नीति-निर्माण, शिक्षा और प्रशासन के उच्च स्तर पर इस पर गंभीर विचार हो रहा है।
भारत-जेन जैसी स्वदेशी पहल आने वाले वर्षों में यह तय कर सकती हैं कि भारत एआई की दुनिया में किस भूमिका में खड़ा होगा—अनुयायी के रूप में या नेतृत्वकर्ता के रूप में।


