सीट बंटवारे पर खटास, सहयोगी दलों में नाराज़गी
बिहार की सियासत में हलचल तेज़ है। INDIA गठबंधन के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। कांग्रेस पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव के लिए अपनी पहली उम्मीदवार सूची जारी कर दी—वो भी बिना अपने सहयोगियों से सलाह लिए। यह घोषणा उस समय आई जब पहले चरण के नामांकन की अंतिम तारीख में महज़ एक दिन शेष था।
सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस के इस एकतरफ़ा कदम से राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और अन्य सहयोगी दलों में असंतोष बढ़ गया है। यह कदम गठबंधन की सामूहिक रणनीति और संवाद पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
पासुपति पारस की पार्टी ने गठबंधन छोड़ा
स्थिति तब और पेचीदा हो गई जब पासुपति कुमार पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) ने INDIA गठबंधन से अलग होने का एलान कर दिया। पारस ने आरोप लगाया कि सीट बंटवारे में उनके साथ “विश्वासघात” हुआ है। पार्टी के प्रवक्ताओं ने कहा कि उन्हें लगातार “नज़रअंदाज़” किया गया और चर्चा का माहौल सिर्फ दिखावा था।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पारस का यह कदम NDA खेमे को अप्रत्यक्ष रूप से मज़बूती दे सकता है, क्योंकि RLJP का कुछ इलाकों में जातीय और संगठनात्मक प्रभाव अभी भी बरकरार है।
मुकेश सहनी की नाराज़गी भी सामने आई
विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के प्रमुख मुकेश सहनी ने भी असंतोष जताया है। पार्टी को 30 सीटों की मांग के मुकाबले केवल 15 सीटें दी गईं। सहनी ने आरोप लगाया कि बड़े दल “जमींदाराना सोच” से बाहर नहीं आ पा रहे हैं। उनके शब्दों में—“हमसे सहयोग लिया जाता है, पर बराबरी नहीं दी जाती।”
यह बयान बिहार की क्षेत्रीय राजनीति में नई बहस को जन्म दे रहा है—क्या INDIA गठबंधन में छोटे दलों को वाकई बराबर का सम्मान मिल रहा है?
अंदरूनी मतभेदों का असर क्या होगा?
कांग्रेस की इस जल्दबाज़ी और सहयोगियों की नाराज़गी ने गठबंधन की एकजुटता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सीट बंटवारे को लेकर असहमति बनी रही, तो यह चुनावी परिणामों को सीधे प्रभावित कर सकता है।
RJD की चुप्पी भी कई तरह के संकेत दे रही है—कांग्रेस के फैसले पर अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है।
बिहार की राजनीति पहले से ही गठबंधनों के टूटने और नए समीकरण बनने के लिए प्रसिद्ध रही है। ऐसे में यह विवाद आने वाले दिनों में और गहराने की पूरी संभावना रखता है।