उत्तराखंड बना मेडिकल एजूकेशन का नया पॉवरहाउस

देहरादून के गलियारों में आज हवा कुछ अलग बह रही है। राज्य बनने के बाद से पहली बार चिकित्सा शिक्षा उत्तराखंड की पहचान बनती दिख रही है। यह बदलाव एक दिन में नहीं आया—इसकी जड़ें उन फैसलों में हैं, जो पिछले कुछ वर्षों में विशेष गति से लिए गए।

2000 बनाम 2025: तस्वीर कैसे बदली

दो दशक पहले पर्वतीय राज्य में डॉक्टर बनने का सपना अक्सर राज्य की सीमाओं से बाहर ही पूरा होता था। न मेडिकल कॉलेज, न स्पेशलाइजेशन की सुविधा और न युवाओं के लिए कोई रोडमैप।
राज्य गठन के शुरुआती वर्षों में हालात इतने सीमित थे कि मेडिकल एजूकेशन के नाम पर उत्तराखंड मानचित्र पर लगभग अदृश्य था।

अब 2025 में तस्वीर बिल्कुल उलट है—राज्य मेडिकल एजूकेशन हब के तौर पर उभर रहा है, जहां सरकारी व निजी मिलाकर 1325 एमबीबीएस सीटें उपलब्ध हैं। यह वही राज्य है जहां 2000 में यह संख्या शून्य थी।

धामी सरकार का एजेंडा: हर जिले तक मेडिकल कॉलेज

सरकार अब इस लक्ष्य की ओर आगे बढ़ रही है कि हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज हो। स्वास्थ्य सचिव डॉ. राजेश कुमार के मुताबिक रुद्रपुर और पिथौरागढ़ में जल्द कॉलेज शुरू होने वाले हैं, जिससे यह लक्ष्य वास्तविकता के और करीब आएगा।

इस रणनीति का सीधा असर दो मोर्चों पर दिख रहा है—
एक तरफ युवाओं को उच्च चिकित्सा शिक्षा अपने राज्य में ही मिल रही है, दूसरी तरफ सरकारी–निजी स्वास्थ्य तंत्र का पूरा ढांचा मजबूत हो रहा है।

सरकारी मेडिकल कॉलेजों की बदलती क्षमता

राज्य के पांचों सरकारी मेडिकल कॉलेज—श्रीनगर, हल्द्वानी, दून, अल्मोड़ा, हरिद्वार—अब चिकित्सा शिक्षा की नई धुरी बन चुके हैं।
जहां 2000 में कोई सरकारी मेडिकल कॉलेज नहीं था, वहीं अब:

  • 625 एमबीबीएस सीटें
  • 238+ पीजी सीटें

यह विस्तार उत्तराखंड को उत्तर भारत में एक उभरते मेडिकल क्लस्टर के रूप में पहचान दिला रहा है।

निजी मेडिकल कॉलेजों का आक्रामक विस्तार

निजी क्षेत्र ने भी पिछले कुछ वर्षों में तेज़ी से स्केल-अप किया है। देहरादून स्थित हिमालयन और एसजीआरआर जैसे संस्थानों में 250-250 सीटें हैं।
ग्राफिक एरा मेडिकल कॉलेज और गौतम बुद्ध मेडिकल कॉलेज की 150-150 सीटें राज्य को मेडिकल मैनपावर उत्पादन में अग्रणी बना रही हैं।

सिर्फ कुछ वर्षों में 130% तक की सीट वृद्धि किसी भी राज्य के लिए उल्लेखनीय आंकड़ा है।

नर्सिंग–पैरामेडिकल सेक्टर: उत्तराखंड की बैकबोन

आज राज्य में—

  • 12 सरकारी और 80+ निजी नर्सिंग कॉलेज
  • 4700 बीएससी नर्सिंग सीटें
  • 463 एमएससी नर्सिंग सीटें
  • 4000+ पैरामेडिकल कोर्स सीटें
  • निजी संस्थानों में 12,000+ allied health seats

पहाड़ों से लेकर मैदानों तक, इस विस्तार ने रोजगार और कौशल विकास का द्वार खोल दिया है।

मानव संसाधन: सिर्फ इमारतें नहीं, लोग भी

2025 के मार्च में सरकार ने 1,232 नर्सिंग अधिकारियों को नियुक्ति पत्र दिए।
तीन वर्षों में—

  • 173 सहायक प्रोफेसर
  • 56 वरिष्ठ फैकल्टी
  • 185 तकनीकी कर्मचारी
  • कुल 22,000+ नई सरकारी नौकरियाँ

ऐसे आक्रमक हायरिंग मॉडल ने स्वास्थ्य सेवाओं की नींव को मजबूत किया है।

दुर्गम क्षेत्रों तक चिकित्सा पहुँच

राज्य की भौगोलिक चुनौती हमेशा से स्वास्थ्य ढांचे की बाधा रही है।
लेकिन हेली-एंबुलेंस जैसी पहलें उत्तराखंड को फ्रंटियर हेल्थकेयर मॉडल की दिशा में ले जा रही हैं।
पिथौरागढ़ और रुद्रपुर में मेडिकल कॉलेज निर्माण इसी व्यापक रणनीति का हिस्सा हैं।

मुख्यमंत्री का विज़न: “उत्तर भारत का मेडिकल सेंटर बने उत्तराखंड”

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का लक्ष्य सिर्फ कॉलेज खोलना नहीं, बल्कि चिकित्सा शिक्षा को एक सम्पूर्ण इकोसिस्टम के रूप में विकसित करना है—
जहां डॉक्टर तैयार हों,
जहां नर्सिंग–पैरामेडिकल क्षेत्र लगातार बढ़े,
और जहां स्वास्थ्य सेवाएँ हर जिले तक समान रूप से पहुँचें।

धामी की यह नीति उत्तराखंड को सिर्फ आत्मनिर्भर नहीं, बल्कि उत्तर भारत के लिए एक मेडिकल टैलेंट हब बनाने की दिशा में आगे बढ़ा रही है।

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