मोदी सरकार की अब एजेंडा-जर्नलिज्म पर सर्जिकल स्ट्राइक, India is not a soft target

नई दिल्ली – “स्वतंत्र पत्रकारिता” की आड़ में वर्षों से भारत के खिलाफ वैचारिक युद्ध चलाने वाले संगठनों पर अब निर्णायक वार हुआ है। गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) ने एक बड़ा ऐलान करते हुए स्पष्ट किया है कि अब विदेशी फंडिंग लेने वाले NGOs किसी भी रूप में ‘समाचार सामग्री’ का प्रकाशन या प्रसारण नहीं कर सकेंगे। यह फैसला FCRA (Foreign Contribution Regulation Act) नियमों को सख्त बनाते हुए लागू किया गया है।

पत्रकारिता नहीं, एजेंडा था!

देश ने लंबे समय तक देखा कि कैसे कुछ NGOs, जो समाज सेवा के नाम पर विदेशों से करोड़ों रुपये का चंदा लेते थे, उन्हीं पैसों से सरकार, सेना, हिंदू धर्म और भारत की नीतियों के खिलाफ ‘स्टोरीज़’ छापते थे। मुद्दा रिपोर्टिंग नहीं था, मकसद था – एजेंडा थोपना।
इन संगठनों की वेबसाइटें, न्यूज़ पोर्टल, यूट्यूब चैनल और ट्विटर थ्रेड्स – सब एक ही दिशा में संकेत करते थे – भारत को कमजोर, विभाजित और संदेहास्पद दिखाना।

MHA ने अब ऐसी गतिविधियों पर रोक लगाते हुए कहा है कि यदि कोई NGO समाचार या जन-संचार से जुड़ा कार्य करता है, तो उसे विदेशी फंडिंग के लिए FCRA रजिस्ट्रेशन नहीं मिलेगा।

पारदर्शिता का नया हथियार

नई व्यवस्था के अनुसार:

  • NGOs को पिछले तीन वर्षों की ऑडिटेड बैलेंस शीट और वित्तीय रिपोर्ट जमा करनी होगी।
  • यह भी स्पष्ट करना होगा कि उनका उद्देश्य क्या है, और फंड का प्रयोग किन कार्यों में हो रहा है।
  • जिन संस्थानों की गतिविधियाँ “राजनीतिक प्रकृति” की मानी जाएँगी, उन्हें फंडिंग की अनुमति नहीं दी जाएगी।

सरल भाषा में कहें तो, अब कोई NGO मीडिया की पोशाक पहनकर विदेशी एजेंडा नहीं बेच सकेगा।

किसे लगेगा सबसे बड़ा झटका?

यह फैसला उन संस्थानों के लिए खतरे की घंटी है, जो लंदन, न्यूयॉर्क या जिनेवा में बैठकर भारत की छवि धूमिल करने के लिए फंड भेजते हैं – और दिल्ली, बेंगलुरु या चंडीगढ़ में बैठे NGO उन्हें “पत्रकारिता” के नाम पर अमल में लाते हैं।
इनमें से कई पोर्टल्स ने खुलेआम भारत विरोधी नैरेटिव फैलाए – जैसे:

  • “भारत में लोकतंत्र खतरे में है”
  • “हिंदू त्योहारों से पर्यावरण को नुकसान”
  • “कश्मीर में मानवाधिकार हनन”
  • “सेना की भूमिका पर सवाल”

अब ये सब ‘खबर’ के नाम पर नहीं, सीधे विदेशी हस्तक्षेप माने जाएंगे।

विरोध की प्रतीक्षित स्क्रिप्ट शुरू

जैसे ही यह फैसला सामने आया, कुछ स्वयंभू “फ्री प्रेस चैम्पियंस” और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं सक्रिय हो गईं। प्रेस की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आज़ादी और मानवाधिकार जैसे शाब्दिक हथियार फिर से निकाले जा रहे हैं।
लेकिन MHA ने साफ किया है कि यह नियम सिर्फ उन पर लागू होगा जो NGO हैं और विदेशी फंडिंग लेते हैं, ना कि भारत के किसी पंजीकृत मीडिया संस्थान पर।

यह न्यू इंडिया है, न कि ‘सॉफ्ट टारगेट’

FCRA में बदलाव कोई नया कदम नहीं है – पर इस बार इसका दायरा स्पष्ट रूप से “विचारधारा-आधारित पत्रकारिता” को निशाना बना रहा है। सरकार का संदेश स्पष्ट है:
“अगर आप भारत में काम करना चाहते हैं, तो पारदर्शिता, सत्यनिष्ठा और संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करना होगा। भारत अब विचारधारा का युद्धक्षेत्र नहीं है, यह आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी राष्ट्र है।”

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