क्या आपने महसूस किया कि आज कुछ कम था? शायद नहीं… लेकिन विज्ञान ने पकड़ लिया वो अंतर, जो हमारी घड़ियों की पकड़ से बाहर था!
आज, 9 जुलाई 2025 को पृथ्वी ने समय से रेस लगा दी — और जीत भी गई! इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन एंड रेफरेंस सिस्टम्स सर्विस (IERS) की चौंकाने वाली रिपोर्ट के मुताबिक, आज का दिन पृथ्वी के इतिहास में अब तक का सबसे छोटा दिन रहा।
🕒 कितना छोटा हुआ दिन?
आम तौर पर हम एक दिन को 24 घंटे यानी 86,400 सेकंड का मानते हैं। लेकिन आज पृथ्वी ने खुद को इतनी तेजी से घुमा दिया कि दिन की लंबाई सामान्य से लगभग 1.3 से 1.6 मिलीसेकंड कम हो गई। यानी एक पलक झपकते समय से भी कम, लेकिन ब्रह्मांडीय घड़ियों के लिए यह बदलाव किसी सायरन से कम नहीं!
🌕 क्यों हुआ ऐसा? क्या चंद्रमा इसका गुनहगार है?
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बदलाव के पीछे कई प्राकृतिक और खगोलीय कारक काम कर रहे हैं:
- चंद्रमा की स्थिति: वर्तमान में चंद्रमा की कक्षा में बदलाव और पृथ्वी पर उसके गुरुत्वाकर्षण प्रभाव से पृथ्वी के घूर्णन पर असर पड़ा है।
- पृथ्वी की कोर में हलचल: पृथ्वी के भीतर की गतिविधियाँ — जैसे लिक्विड आयरन कोर की मूवमेंट — उसकी रोटेशन स्पीड को प्रभावित कर रही हैं।
- जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियर पिघलना: जब पृथ्वी की सतह पर पानी का वितरण बदलता है, तो उसकी घूर्णन गति भी हल्के रूप से प्रभावित होती है।
- भूकंप, ज्वालामुखी, महासागरीय धाराएं भी बहुत सूक्ष्म रूप से समय में फर्क ला सकती हैं।
🧠 इंसान को क्या फर्क पड़ता है?
शायद हमें यह 1.5 मिलीसेकंड का अंतर कभी महसूस नहीं होगा। हम सोते-जागते रहेंगे, घड़ी अपने नियम से चलेगी, लेकिन वैज्ञानिकों की दुनिया में ये मिलीसेकंड भी ‘भूकंप’ जैसे होते हैं। क्यों?
- सटीक वैश्विक समय प्रणाली (UTC) पर इसका असर हो सकता है।
- GPS सैटेलाइट्स और अंतरिक्ष अनुसंधान में अत्यंत सूक्ष्म समय गणना आवश्यक होती है।
- अंतर्राष्ट्रीय संचार और कंप्यूटर नेटवर्कों को सिंक्रनाइज़ करने के लिए भी यह परिवर्तन मायने रखता है।
⏳ “Negative Leap Second” – क्या समय में कटौती होगी?
अब तक हमने समय की गड़बड़ी को सुधारने के लिए “लीप सेकंड” जोड़े हैं। लेकिन वैज्ञानिकों को अंदेशा है कि अब पहली बार इतिहास में एक सेकंड “घटाना” पड़ सकता है – यानी नेगेटिव लीप सेकंड।
यह कदम अभूतपूर्व होगा, क्योंकि इसके लिए दुनिया भर की डिजिटल घड़ियों और कंप्यूटिंग सिस्टम्स को नई प्रोग्रामिंग करनी पड़ेगी। IT और स्पेस साइंस के लिए यह बड़ा परिवर्तन होगा।
🌐 आगे क्या होगा?
IERS और अन्य खगोलशास्त्रीय संस्थाएँ पृथ्वी की घूर्णन गति पर बारीकी से नजर रख रही हैं। वैज्ञानिक भविष्य में और भी छोटे दिनों की संभावना जता रहे हैं। साथ ही, एक बात भी साफ़ है — हमारी पृथ्वी अब स्थिर नहीं रही, वह लगातार बदल रही है, और यह बदलाव समय को भी चकमा देने लगा है।
🛰️ क्या हम एक ऐसे युग में प्रवेश कर चुके हैं, जहाँ घड़ियों को ब्रह्मांड के आगे झुकना पड़ेगा?