जेपी नड्डा का नेतृत्व यथावत: रणनीति, संकट और संगठन में स्थायित्व की अनिवार्यता

संपादक और राजनीतिक ब्यूरो की संयुक्त रिपोर्ट

नई दिल्ली।
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का कार्यकाल वर्ष 2025 में भी बढ़ाया जाना अब केवल राजनीतिक संकेत भर नहीं, अपितु एक गहरी रणनीतिक व्यूह रचना का स्पष्ट संकेत है। जहां एक ओर सीमाओं पर पाकिस्तान के साथ तनाव अपने चरम पर है, वहीं दूसरी ओर बिहार जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य में आगामी विधानसभा चुनावों की आहट सुनाई देने लगी है। ऐसे में भाजपा नेतृत्व द्वारा संगठन में स्थायित्व बनाए रखने का निर्णय केवल नियुक्ति में विलंब नहीं, बल्कि परिस्थिति-सापेक्ष निर्णय के रूप में देखा जा रहा है।

सत्तारूढ़ दल के उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो भाजपा अध्यक्ष के चयन की संवैधानिक प्रक्रिया को स्थगित करते हुए श्री नड्डा के नेतृत्व को आगामी एक वर्ष तक और विस्तार दिया जा सकता है। पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की औपचारिक घोषणा भले शेष हो, परंतु अंदरखाने इस विषय पर आम सहमति बन चुकी है।

राष्ट्रीय संकट और संगठन का सुदृढ़ संतुलन

पाकिस्तान के साथ सीमा पर हाल ही में उत्पन्न हुए संघर्ष की स्थिति ने भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति को नई दिशा में सोचने को विवश किया है। ऐसे समय में जब केंद्र सरकार और सेना पूरी तरह सक्रिय हैं, भाजपा के संगठनात्मक मोर्चे पर नेतृत्व परिवर्तन को टालना एक सामयिक निर्णय प्रतीत होता है। भाजपा के लिए यह समय युद्ध और चुनाव — दोनों ही स्तरों पर मनोवैज्ञानिक और रणनीतिक दृढ़ता का है।

पार्टी सूत्रों के अनुसार, “नड्डा जी न केवल एक अनुभवी संगठनकर्ता हैं, बल्कि संकट की घड़ी में भाजपा के लिए एक स्थिर और सधा हुआ चेहरा भी हैं। चाहे कोविड काल रहा हो या वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव, उन्होंने संगठन की साख को बनाये रखा।”

बिहार चुनाव की धुरी पर संगठन

राजनीतिक दृष्टि से यदि बात करें, तो वर्ष 2025 की दूसरी छमाही में प्रस्तावित बिहार विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए एक निर्णायक मोर्चा होंगे। ऐसे में संगठन के शीर्ष पर किसी भी प्रकार की अस्थिरता अथवा चेहरे का परिवर्तन चुनावी तैयारियों को प्रभावित कर सकता है। श्री नड्डा बिहार से गहरे परिचित हैं, और पूर्ववर्ती विधानसभा चुनावों में भी उन्होंने राज्य में भाजपा की रणनीति को दिशा दी थी।

कार्यनीति की निरंतरता है लक्ष्य

ऐसे में यह कहना उचित होगा कि भाजपा अध्यक्ष पद की नियुक्ति में देरी न होकर, यह एक राजनीतिक संयम का प्रतीक है। एक ऐसा संयम जो सीमाओं पर सैन्य आक्रामकता और भीतर चुनावी घमासान के मध्य संगठन को स्थिर रखने हेतु आवश्यक है।

भविष्य की रेखा

भाजपा के संविधान के अनुसार, अध्यक्ष का कार्यकाल तीन वर्षों का होता है और सामान्यतः नये अध्यक्ष का चयन तय प्रक्रिया से किया जाता है। किंतु यह पहला अवसर नहीं जब संगठन ने परिस्थिति विशेष में समयबद्ध प्रक्रिया को स्थगित किया हो। पूर्व में भी चुनावी अथवा संकट की घड़ी में पार्टी ने नेतृत्व की निरंतरता को प्राथमिकता दी है।

जेपी नड्डा का अध्यक्ष पद पर बना रहना वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य की मांग है — जहां सीमाओं पर युद्ध जैसी स्थिति है, भीतर राज्यों में चुनावी रणभेरी बज रही है, और पार्टी संगठन को एक ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता है जो अनिश्चितता में भी स्थिरता का आश्वासन दे सके। भाजपा फिलहाल किसी प्रयोग के मूड में नहीं है। नड्डा के नेतृत्व में संगठन अगली लड़ाई के लिए तैयार दिख रहा है।

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