क्यों कभी नहीं बैठ पाए एक साथ 200 विधायक? मीणा के निधन के बाद फिर उठे सवाल, क्या बोले नेता

राजस्थान विधानसभा के नए भवन में एक अद्भुत और रहस्यमयी संयोग वर्षों से देखा जा रहा है। इस भवन में अब तक कभी भी 200 विधायक एक साथ नहीं बैठे हैं। हाल ही में सलूंबर विधायक अमृतलाल मीणा के निधन ने इस संयोग को और भी मजबूत कर दिया है। मीणा का निधन विधानसभा सत्र के दौरान हुआ, जिसमें उन्होंने सक्रियता से भाग लिया था। उनका निधन राज्य की राजनीति में चर्चा का विषय बन गया है।

2001 में बना विधानसभा भवन
मीणा से पहले भी विधानसभा के दौरान मास्टर भंवरलाल मेघवाल, पं. भंवरलाल शर्मा, कैलाश त्रिवेदी और किरण माहेश्वरी जैसे वरिष्ठ नेताओं का निधन हुआ था। इन विधायकों की असामयिक मृत्यु ने इस संयोग को और भी रहस्यमयी बना दिया है। ऐसा कहा जा रहा है कि 2001 में बने इस विधानसभा भवन में कभी भी 200 विधायक एक साथ नहीं बैठ पाए हैं। हर बार कुछ विधायकों की मौत के कारण यह संख्या पूरी नहीं हो पाई है।

पहले भी हुईं मौतें
प्रदेश की मौजूदा 15वीं विधानसभा में पिछले चार सालों में छह विधायकों की मौत हो चुकी है। यह संयोग केवल इसी विधानसभा तक सीमित नहीं है, बल्कि 14वीं विधानसभा के दौरान भी विधायकों की मौतें हुईं। कोरोना महामारी के दौरान मंत्री मास्टर भंवरलाल, भाजपा विधायक किरण माहेश्वरी, कांग्रेस विधायक कैलाश त्रिवेदी, गजेंद्र सिंह शक्तावत और गौतमलाल मीणा का निधन हुआ था।

विधायकों के मन में वास्तु दोष और भूतों का डर
सरकारी सचेतक कालूलाल गुर्जर ने इस वास्तु दोष को दूर करने के लिए हवन कराने की मांग की थी। तत्कालीन विधायक हबीबुर्रहमान का कहना था कि विधानसभा में भूतों का साया है, जिसके कारण यहां कभी भी 200 विधायकों की सीटें पूरी नहीं भर पातीं। इस प्रकार की मांगें अन्य नेताओं द्वारा भी की गई हैं, लेकिन अभी तक किसी भी सरकार ने विधानसभा में पूजा-पाठ या हवन नहीं कराया है।

श्मशान के पास स्थित है भवन
राजस्थान विधानसभा का निर्माण 1994 में शुरू हुआ था और यह मार्च 2001 में बनकर तैयार हुआ। इस भवन में 260 सदस्यों के बैठने की क्षमता है और पांचवीं मंजिल पर एक और हॉल है। उसमें भी इतनी ही क्षमता है। भवन के निकट ही एक श्मशान स्थल स्थित है, जो इस अनोखे संयोग को और भी रहस्यमय बनाता है। विधानसभा के पुराने भवन में ऐसा कोई संयोग देखने को नहीं मिला था।

राजनीति में चर्चा का विषय 
यह संयोग, जो एक अंधविश्वास की तरह लग सकता है, राजस्थान की राजनीति में चर्चा का विषय बना हुआ है। क्या यह महज एक संयोग है या इसमें कोई गहरा रहस्य छिपा है? यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है।

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