दशकों पुराने मर्ज का अब तक कोई इलाज नहीं ढूंढ पाई भाजपा, सत्ता और संगठन के बीच दूरियां बरकरार
प्रदेश में भजनलाल सरकार को बने 8 महीनों से ज्यादा का वक्त हो चुका है लेकिन अब भी सरकार और संगठन का तालमेल मुद्दा बड़ा बना हुआ है। ये वो मर्ज है, जिसके साथ बीजेपी दशकों से जूझती आई है लेकिन आज तक इसका इलाज नहीं ढूंढ पाई। सीपी जोशी गए तो उनकी जगह मदन राठौड़ आ गए लेकिन हालात नहीं बदले। नए अध्यक्ष की अगुवाई में बीजेपी का सदस्यता अभियान शुरू होने से पहले ही सवालों के घेरे में आ गया।
पहले सीपी के सिर फूटा ठीकरा
मदन राठौड़ को सीपी जोशी की जगह बीजेपी की कमान सौंपे जाने का बड़ा कारण यही था कि संगठन और सरकार दोनों जगह लो प्रोफाइल नेता रहेंगे तो सामंजस्य में दिक्कत कम होगी। हालांकि सीपी जोशी भी लो प्रोफाइल माने जाते हैं लेकिन भजनलाल के सीएम बनने के बाद संगठन से सामंजस्य बिगड़ा और पार्टी धड़ों में बंटी नजर आई। इसके चलते लोकसभा चुनावों में भाजपा को राजस्थान में मुंह की खानी पड़ी। आखिर में हार का ठीकरा सीपी जोशी के सिर फूटा और उनकी अध्यक्ष पद से विदाई कर दी गई।
संघ की बेरुखी
लोकसभा चुनावों के दौरान संघ की नाराजगी के किस्से भी सामने आए। राजस्थान की बात करें तो ब्यूरोक्रेसी को लेकर संघ नाखुश है। पिछली सरकार के पॉवरफुल अफसरों को भजनलाल सरकार हिला भी नहीं पाई है। ब्यूरोक्रेसी के हावी होने के कई मामले सत्तापक्ष की तरफ से ही उठाए गए। विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाया और सीएस को सुपर सीएम तक बताया गया।