भारतीय संत समाज में नई ऊंचाइयों को छूने से पहले ही एक सनसनीखेज निर्णय ने ममता कुलकर्णी की ‘आध्यात्मिक यात्रा’ को विराम दे दिया। पिछले हफ्ते ही जिन्हें किन्नर अखाड़े का महामंडलेश्वर बनाया गया था, वे अब महामंडलेश्वर रह ही नहीं गईं। इस फैसले के साथ ही उन्हें पद पर बैठाने वाली आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी भी अपने पद से मुक्त कर दी गईं। कारण? नियमों को ताक पर रखकर ममता को ये पद सौंपना।
“बॉलीवुड से मोक्ष की ओर” – लेकिन ब्रह्माण्ड को मंजूर नहीं!
ममता कुलकर्णी, जिन्होंने 90 के दशक में अपने ग्लैमरस अवतार से सिनेमाई दुनिया में हलचल मचा दी थी, जब आध्यात्म की ओर मुड़ीं, तो उम्मीद थी कि वे बॉलीवुड से सीधा ब्रह्मलीन होने का शॉर्टकट मारेंगी। पर क़िस्मत का खेल देखिए – महामंडलेश्वर का पद एक सप्ताह से ज्यादा टिक नहीं पाया।
“संत समाज में ‘फ्लॉप शो'”
जैसे ही यह खबर फैली कि ममता कुलकर्णी महामंडलेश्वर बन गई हैं, संत समाज में हड़कंप मच गया। कई पारंपरिक संतों को यह “स्क्रिप्ट” हजम नहीं हुई। और फिर, जैसा बॉलीवुड में होता है – विरोध, विवाद और अंत में “पद से आउट” का ऐलान।
“आचार्य लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की भी ‘एग्जिट'”
यह अकेले ममता की कहानी नहीं रही, बल्कि उन्हें महामंडलेश्वर बनाने वाली लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी खुद भी अपने पद से हाथ धो बैठीं। आरोप है कि उन्होंने अखाड़े के नियमों को ताक पर रखकर यह निर्णय लिया। संत समाज ने इस पूरे घटनाक्रम को एक “आध्यात्मिक स्कैम” की तरह देखा और त्वरित कार्रवाई कर दी।
“अध्यात्म भी अब ‘बॉक्स ऑफिस हिट’ चाहिए?”
भारत में धर्म, अध्यात्म और संत परंपराएं सदियों पुरानी हैं। लेकिन अब यह भी बॉलीवुड स्टाइल में हिट-फ्लॉप का खेल बनता जा रहा है। किसी को महामंडलेश्वर बनाने से पहले स्क्रिप्ट की जरूरत नहीं थी, लेकिन हटाने के लिए नियम-कायदे याद आ गए।
“माया मिली ना राम”
अंत में, इस पूरे घटनाक्रम से यही साबित होता है – न ममता को संत समाज में जगह मिली, न लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी अपने निर्णय को बचा पाईं। अध्यात्म के इस नाटक में हर कोई कुछ ही पलों के लिए चमका और फिर अंधकार में चला गया।