वॉशिंगटन/नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एक विस्फोटक बयान ने भारत की चुनावी राजनीति में भूचाल ला दिया है। ट्रंप ने भारत में मतदान प्रक्रिया से जुड़े 21 मिलियन डॉलर के अमेरिकी फंड पर टिप्पणी करते हुए कहा, “मुझे लगता है कि वे किसी और को निर्वाचित करने की कोशिश कर रहे थे। हमें भारत सरकार को बताना होगा… यह पूरी तरह से एक बड़ी सफलता है।”
ट्रंप का यह बयान सीधे तौर पर अमेरिकी फंडिंग और भारत में चुनावी हस्तक्षेप को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है। सवाल यह है कि क्या अमेरिका भारत के चुनावों में अप्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप कर रहा था? और अगर हां, तो किसके पक्ष में?
अमित मालवीय का कड़ा पलटवार
बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने इस मुद्दे पर तुरंत प्रतिक्रिया दी। उन्होंने हाल ही में ट्वीट किया:
“ट्रंप का बयान स्पष्ट करता है कि अमेरिका की लोकतंत्र के नाम पर दी जाने वाली फंडिंग वास्तव में एक एजेंडा-ड्रिवन ऑपरेशन है। भारत को इस पर कड़ा रुख अपनाना चाहिए और विदेशी ताकतों द्वारा हमारे चुनावों में हस्तक्षेप के किसी भी प्रयास को अस्वीकार करना चाहिए।”
मालवीय के ट्वीट का विश्लेषण
मालवीय के इस ट्वीट में दो प्रमुख संकेत हैं:
1. ‘एजेंडा-ड्रिवन ऑपरेशन’ का आरोप – उनका इशारा स्पष्ट रूप से पश्चिमी ताकतों द्वारा भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिशों की ओर है। यह बयान भारत में सक्रिय कई विदेशी NGOs और संस्थानों पर सवाल उठाता है, जो लोकतंत्र और मानवाधिकारों के नाम पर फंडिंग प्राप्त करते हैं।
2. भारत सरकार को कड़ा रुख अपनाने की सलाह – यह संकेत है कि बीजेपी सरकार इस मुद्दे को हल्के में नहीं लेगी और इसे कूटनीतिक स्तर पर अमेरिका के सामने उठा सकती है।
क्या अमेरिका की मंशा पर उठेंगे सवाल?
यह पहली बार नहीं है जब भारत के चुनावों में विदेशी हस्तक्षेप की आशंका जताई गई हो, लेकिन जब खुद अमेरिकी राष्ट्रपति इस तरह के संकेत देते हैं, तो मामला और गंभीर हो जाता है। ट्रंप के बयान के बाद यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या अमेरिका भारत के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा था?
अब नजरें भारत सरकार की आधिकारिक प्रतिक्रिया पर टिकी हैं। क्या यह मुद्दा कूटनीतिक संबंधों में नई दरार डालेगा? क्या भारत अमेरिकी हस्तक्षेप के खिलाफ कोई सख्त कदम उठाएगा?
ट्रंप के बयान और मालवीय के तीखे हमले के बाद यह साफ हो गया है कि भारत के चुनाव अब सिर्फ घरेलू मुद्दा नहीं रहे, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति का भी हिस्सा बन गए हैं।