सूरत | कपड़ा नगरी सूरत में गुरुवार रात लगी भीषण आग ने न सिर्फ एक बाजार को जलाकर राख कर दिया, बल्कि 800 से अधिक कारोबारियों के अरमान भी स्वाहा कर दिए। खासतौर पर राजस्थान से आए व्यापारी, जो वर्षों की मेहनत से करोड़ों की संपत्ति बना चुके थे, अब सड़क पर आ गए हैं।
रातभर जलता रहा ‘ड्रीम मार्केट’
घटना सूरत के रघुवीर टेक्सटाइल मार्केट की है, जहां गुरुवार रात अचानक आग भड़क उठी। यह मार्केट सूरत का सबसे बड़ा थोक कपड़ा बाजार है, जहां लाखों मीटर कपड़ा रोजाना बिकता है। चश्मदीदों के अनुसार, आग पहले एक दुकान में लगी और फिर कुछ ही मिनटों में पूरी इमारत को लपटों ने घेर लिया। दमकल विभाग ने कड़ी मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया, लेकिन तब तक करोड़ों का नुकसान हो चुका था।
“32 साल की मेहनत थी, सब राख हो गया”
सिर पर हाथ रखे और आंखों में आंसू लिए सूरत के कपड़ा व्यापारी राजेश चौधरी कहते हैं, “मैं 1992 में राजस्थान के चूरू से यहां आया था। तब जेब में सिर्फ 500 रुपये थे। दिन-रात मेहनत कर अपने कारोबार को करोड़ों तक पहुंचाया। लेकिन एक ही रात में सब खत्म हो गया। अब न दुकान बची, न गोदाम, और न ही व्यापार।”
उसी बाजार में व्यापार करने वाले हनुमान प्रसाद काबरा बताते हैं, “मेरी तीन पीढ़ियों की मेहनत थी। इस आग ने मेरी दुकान, कपड़ा और सपने सब जला दिए। हमारे पास न बीमा है, न सरकार से कोई मदद की उम्मीद। अब बच्चों की फीस कहां से देंगे, घर का खर्च कैसे चलेगा?”
व्यापारियों पर कर्ज की दोहरी मार
इस घटना ने सूरत के कपड़ा कारोबार की नाजुक स्थिति को उजागर कर दिया है। छोटे व्यापारियों का कहना है कि पहले ही वे जीएसटी, मंदी और ऑनलाइन शॉपिंग के बढ़ते प्रभाव से जूझ रहे थे। अब इस आग ने रही-सही कसर पूरी कर दी। व्यापारियों में से कई ने बैंक और निजी साहूकारों से कर्ज ले रखा था, जिसे चुकाने का अब कोई रास्ता नहीं दिख रहा।
सरकार और प्रशासन की लापरवाही?
स्थानीय व्यापार संघों का आरोप है कि प्रशासन ने पहले भी इस बाजार की सुरक्षा को लेकर चेतावनी दी थी, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। बाजार में अग्निशमन व्यवस्था बेहद कमजोर थी, जिससे आग तेजी से फैल गई। व्यापारियों की मांग है कि सरकार उन्हें राहत पैकेज दे और कर्ज माफ करे, ताकि वे फिर से अपने पैरों पर खड़े हो सकें।
इस भयावह आग के बाद सूरत का कपड़ा बाजार अपने सबसे बड़े संकट से गुजर रहा है। जहां कभी लाखों का कारोबार होता था, वहां अब राख और टूटे सपनों का मंजर है। सवाल यह है कि क्या सरकार इन मेहनतकश व्यापारियों की मदद के लिए आगे आएगी, या फिर वे अपने हाल पर छोड़ दिए जाएंगे?