मुंबई की एक विशेष भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) अदालत ने भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की पूर्व अध्यक्ष माधबी पुरी बुच और पांच अन्य अधिकारियों के खिलाफ गंभीर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप में प्राथमिकी (FIR) दर्ज करने का आदेश दिया है। यह मामला भारतीय शेयर बाजार के इतिहास में सबसे बड़े घोटालों में से एक बन सकता है, जिसमें हजारों करोड़ के हेरफेर का आरोप है।
क्या है पूरा मामला?
शिकायतकर्ता के अनुसार, SEBI के शीर्ष अधिकारियों ने अपने वैधानिक दायित्वों का पालन नहीं किया और बाजार में हेरफेर की सुविधा प्रदान की। आरोप यह भी है कि SEBI के भीतर एक संगठित गिरोह सक्रिय था, जिसने शेयर बाजार में धांधली कर निवेशकों को भारी नुकसान पहुंचाया।
FIR के मुख्य बिंदु:
माधबी पुरी बुच और 5 अन्य SEBI अधिकारियों के खिलाफ धोखाधड़ी, विश्वासघात, भ्रष्टाचार और आपराधिक साजिश के तहत मामला दर्ज।
SEBI पर आरोप है कि उसने नियमों के विरुद्ध कुछ कंपनियों को लाभ पहुंचाया और नियामकीय निगरानी में लापरवाही बरती।
कुछ कंपनियों को बिना जरूरी जांच-पड़ताल के शेयर बाजार में लिस्टिंग की अनुमति दी गई, जिससे बड़े स्तर पर शेयरों की कीमतों में कृत्रिम उछाल आया।
कई विदेशी निवेशकों और ऑफशोर संस्थाओं को नियमों के विपरीत फायदा पहुंचाने का आरोप।
क्या माधबी पुरी बुच फंस गई हैं?
माधबी पुरी बुच का SEBI प्रमुख के रूप में कार्यकाल 28 फरवरी को समाप्त हुआ था। उनके कार्यकाल में कई बड़े फैसले लिए गए थे, जिनमें शेयर बाजार में T+1 सेटलमेंट, म्यूचुअल फंड उद्योग में पारदर्शिता बढ़ाने और निवेशकों के लिए कड़े नियम लागू करने जैसे कदम शामिल थे।
हालांकि, उनका कार्यकाल विवादों से घिरा रहा। अमेरिका स्थित शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग और भारतीय विपक्षी दलों ने उन पर कई गंभीर आरोप लगाए थे। कांग्रेस और अन्य दलों ने आरोप लगाया था कि SEBI ने जानबूझकर अडाणी समूह से जुड़े वित्तीय लेन-देन की अनदेखी की और विदेशी निवेशकों के मामलों को दबाने का प्रयास किया।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से बढ़ी मुश्किलें
अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग ने माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच पर विदेशी निवेशकों के साथ संदिग्ध लेन-देन करने का आरोप लगाया था। रिपोर्ट के अनुसार, ऑफशोर कंपनियों के जरिए कई अरब डॉलर के निवेश ऐसे फंड्स में किए गए, जो कथित रूप से अडाणी समूह के साथ जुड़े हुए थे।
माधबी बुच ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने सभी नियमों का पालन किया और उनके कार्यकाल में SEBI पूरी तरह स्वतंत्र रूप से कार्यरत था। लेकिन अब ACB अदालत के इस आदेश के बाद मामला नए मोड़ पर आ गया है।
अब क्या होगा?
ACB मुंबई को 30 दिनों के भीतर जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
SEBI के पूर्व और वर्तमान अधिकारियों से गहन पूछताछ होगी।
यदि आरोप सही पाए जाते हैं, तो यह भारतीय शेयर बाजार के सबसे बड़े घोटालों में शामिल हो सकता है।
बाजार में विश्वास की भारी क्षति हो सकती है, जिससे निवेशक घबराकर अपना पैसा निकाल सकते हैं।
SEBI की साख दांव पर!
यह मामला SEBI की साख और निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है। भारत में SEBI को निष्पक्ष निगरानी संस्था माना जाता है, लेकिन यदि इस घोटाले के आरोप साबित होते हैं, तो यह बाजार के लिए सबसे बड़ा झटका होगा।
अब निगाहें इस जांच पर टिकी हैं कि क्या यह सिर्फ एक राजनीतिक साजिश है या सच में शेयर बाजार के सबसे बड़े घोटाले का पर्दाफाश होने वाला है!