प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगामी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन से पहले एक स्पष्ट संकेत दिया है कि भारत अब सिर्फ ‘मेज पर बैठा एक भागीदार’ नहीं, बल्कि ‘दक्षिणी गोलार्द्ध की आवाज़’ बनकर उभर रहा है। उन्होंने कहा कि वे इस शिखर सम्मेलन में वैश्विक चुनौतियों पर खुलकर बात करेंगे और Global South यानी विकासशील देशों की प्राथमिकताओं को सामने रखेंगे।
🔹 मोदी का फोकस: Global South और साझा चिंताएं
मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि जलवायु परिवर्तन, वैश्विक खाद्य असुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं की समानता, तकनीकी समावेशन और वित्तीय न्याय जैसे मुद्दों पर Global South को संगठित होकर एक आवाज़ में बात करनी होगी। भारत इन विषयों पर नेतृत्व करने और विकासशील देशों के हितों को मंच पर रखने को तैयार है।
“आज दुनिया सिर्फ शक्तिशाली देशों की नहीं रह गई, अब यह संवाद और संतुलन की मांग करती है। भारत इसका वाहक बनना चाहता है,” — मोदी
🌐 भारत-कनाडा संबंधों में नरमी की बर्फ पिघलने लगी
जहाँ एक ओर भारत वैश्विक नीति निर्माण में अपनी भूमिका मज़बूत कर रहा है, वहीं दूसरी ओर भारत और कनाडा के बीच तल्ख़ रिश्तों में सुधार के संकेत मिलने लगे हैं।
बीते वर्ष दोनों देशों के बीच राजनयिक तनाव चरम पर था, लेकिन अब सूत्रों के अनुसार, दोनों पक्ष पारस्परिक मुद्दों पर बातचीत और सामरिक सहयोग की बहाली की दिशा में अग्रसर हैं।
यह नया सहयोग भारत को फिर से कनाडा की Indo-Pacific Strategy में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक भागीदार बना सकता है। इससे व्यापार, रक्षा, तकनीकी विनिमय और संयुक्त वैश्विक मंचों पर भागीदारी को नया जीवन मिलने की उम्मीद है।
🔍 विश्लेषण:
मोदी की विदेश नीति अब “वसुधैव कुटुंबकम्” की भावना को आधुनिक कूटनीति में बदल रही है — जहाँ भारत न सिर्फ विकासशील देशों की आवाज़ है, बल्कि पश्चिमी शक्तियों के साथ संतुलन बनाते हुए एक निर्णायक नेतृत्वकर्ता के रूप में उभर रहा है।
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