भाजपा अध्यक्ष पद को लेकर असमंजस के बीच संघ की एंट्री: नौ राज्यों में नियुक्त हुए आरएसएस पृष्ठभूमि वाले प्रदेश अध्यक्ष

भारतीय जनता पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है, लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के उत्तराधिकारी को लेकर पार्टी के अंदर गहराता असमंजस अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की सक्रियता की ओर संकेत कर रहा है। हाल ही में भाजपा ने नौ राज्यों में नए प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किए हैं — और हैरानी की बात यह है कि ये सभी नेता संघ से गहरे जुड़े, अपेक्षाकृत कम चर्चित लेकिन संगठननिष्ठ कार्यकर्ता हैं।

नेतृत्व संकट और अध्यक्षीय चुनाव की उलझन

जेपी नड्डा का कार्यकाल पहले ही एक बार बढ़ाया जा चुका है और अब पार्टी को नए अध्यक्ष के लिए संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया पूरी करनी है। चुनाव आयोग के नियमों के तहत राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव तभी संभव है जब कम से कम 50% प्रदेशों में चुने गए प्रदेश अध्यक्ष मौजूद हों। ऐसे में भाजपा ने पिछले दो हफ्तों में एक के बाद एक नौ राज्यों में संगठनात्मक नियुक्तियाँ कर दीं।

राजस्थान, गुजरात, उत्तराखंड, झारखंड, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा, हरियाणा और तेलंगाना में नियुक्त हुए नए प्रदेश अध्यक्षों में एक बात समान है — इनका संघ पृष्ठभूमि से आना और अपेक्षाकृत मीडिया से दूर रहना। इससे यह संकेत साफ है कि संघ नेतृत्व अब पार्टी की कमान ऐसे व्यक्ति को सौंपना चाहता है जो ‘संगठन सर्वोपरि’ के मंत्र को आत्मसात करता हो।

संघ का हस्तक्षेप: मजबूरी या रणनीति?

भाजपा में राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व का सवाल न केवल पार्टी के भविष्य बल्कि 2029 की रणनीति के लिहाज से भी अहम है। नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल की शुरुआत के साथ ही यह स्पष्ट हो गया था कि संगठन को फिर से धार देने की आवश्यकता होगी। लेकिन जे.पी. नड्डा के उत्तराधिकारी को लेकर पार्टी में कोई सर्वसम्मति बनती नहीं दिख रही थी।

ऐसे में संघ का हस्तक्षेप एक सोची-समझी रणनीति के तहत आया है। सूत्रों के अनुसार, संघ नेतृत्व ने यह तय किया है कि अगला अध्यक्ष “प्रोजेक्शन-ओरिएंटेड” नहीं बल्कि संगठन को जमीन से जोड़ने वाला होना चाहिए — जो 2024 की सीटों में आई गिरावट के बाद पार्टी की जड़ों को फिर से मज़बूत कर सके।

संभावित उत्तराधिकारियों के नाम और अंतर्कलह

हालांकि आधिकारिक रूप से पार्टी ने अभी तक किसी नाम की पुष्टि नहीं की है, लेकिन कई नाम अंदरखाने चर्चा में हैं — जिनमें विनोद तावड़े, सुनील बंसल, ओम माथुर जैसे संगठन के पुराने और संघ समर्थित चेहरे शामिल हैं। नड्डा के करीबी भूपेन्द्र यादव या बीजेपी के रणनीतिकार कहे जाने वाले देवेंद्र फडणवीस जैसे नामों की भी चर्चा है, लेकिन संघ ऐसे नामों से दूर रहना चाहता है जो अधिक राजनीतिक माने जाते हैं और संघ के नियंत्रण में न रह सकें।

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को लेकर चल रही यह कवायद पार्टी के आगामी भविष्य को तय करने वाली है। एक ओर जहां मोदी सरकार केंद्र में स्थिर है, वहीं पार्टी संगठन में नेतृत्व की स्पष्टता की आवश्यकता है। संघ की ओर से अध्यक्षीय प्रक्रिया को सुचारु रूप से आगे बढ़ाने और कमान अपने पसंदीदा सांचे के व्यक्ति को सौंपने की कवायद अब तेज़ हो चुकी है।

भाजपा के लिए यह सिर्फ नेतृत्व परिवर्तन नहीं बल्कि एक वैचारिक पुनर्पुष्टि का क्षण है — क्या पार्टी फिर से “संगठन आधारित” हो पाएगी या “व्यक्ति आधारित” नेतृत्व की परंपरा ही आगे बढ़ेगी?

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