सूर्योपासना का पर्व: लोकभावना का उत्सव
देहरादून, 28 अक्तूबर। उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा की अद्भुत छटा दिखाई दी। घाटों पर सजे दीपों की पंक्तियाँ, भक्तों के चेहरों पर श्रद्धा की चमक और सूर्यदेव के प्रति अटूट विश्वास ने वातावरण को भक्तिमय बना दिया। यह पर्व न केवल पूर्वांचल की परंपरा का प्रतीक है, बल्कि अब उत्तराखंड के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भी पूरे हर्ष और श्रद्धा के साथ मनाया जाने लगा है।
मुख्य सचिव ने सपरिवार किया सूर्योपासना
राज्य के मुख्य सचिव आनन्द बर्द्धन ने भी अपनी पारिवारिक परंपरा का निर्वाह करते हुए देहरादून के प्रेमनगर स्थित टोंस नदी के घाट पर सपरिवार छठ पूजा में भाग लिया। उन्होंने पहले अस्ताचलगामी सूर्य (डूबते सूरज) को अर्घ्य दिया और अगली सुबह उदीयमान सूर्य (उगते सूरज) को अर्पण कर पूजा-अर्चना संपन्न की।
मुख्य सचिव ने इस अवसर पर प्रदेशवासियों की सुख-समृद्धि, उत्तरोत्तर प्रगति और खुशहाली की मंगलकामना की। उन्होंने कहा कि छठ पर्व जीवन में संयम, श्रद्धा और प्रकृति के प्रति सम्मान का संदेश देता है।

टोंस नदी घाट पर उमड़ा जनसैलाब
प्रेमनगर का टोंस नदी घाट इस अवसर पर श्रद्धालुओं से खचाखच भरा रहा। घाट पर महिलाओं ने पारंपरिक परिधान धारण किए, सिर पर पूजा के लिए डाला (टोकरी) रखी और सूर्यदेव को अर्घ्य देने के लिए नदी में खड़ी हुईं।
व्रती महिलाओं ने 36 घंटे के निर्जल व्रत का पालन करते हुए परिवार की समृद्धि और मंगल की कामना की। व्रत के साथ लोकगीतों की गूंज और सूर्य आराधना की सामूहिक भावना ने माहौल को और भी पवित्र बना दिया।
प्रदेश के अन्य जिलों में भी दिखा उत्साह
देहरादून के साथ-साथ हरिद्वार, ऋषिकेश, रुद्रपुर, हल्द्वानी और ऊधमसिंहनगर जैसे जिलों में भी छठ पूजा धूमधाम से मनाई गई।
गंगा और स्थानीय नदियों के किनारे श्रद्धालु परिवारों ने पारंपरिक ढंग से पूजा-अर्चना की। स्थानीय प्रशासन की ओर से घाटों पर साफ-सफाई, सुरक्षा और प्रकाश की विशेष व्यवस्था की गई थी।
आस्था से भरा उत्तराखंड, परंपरा और आधुनिकता का संगम
छठ पर्व अब केवल बिहार, झारखंड या पूर्वी उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में भी यह आस्था और एकता का प्रतीक बन गया है। यह पर्व प्रकृति, सूर्य और जल के प्रति मानव की कृतज्ञता का उत्सव है—जहां धर्म, संस्कृति और पर्यावरण का सुंदर संगम दिखाई देता है।

