देहरादून: उत्तराखंड में संपन्न हुए स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजों ने कांग्रेस की चुनावी रणनीति और ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) को लेकर उठाए गए सवालों को कठघरे में खड़ा कर दिया है। भाजपा ने 11 नगर निगमों सहित 100 शहरी स्थानीय निकायों में शानदार प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस को करारी शिकस्त दी। इस चुनाव की खास बात यह रही कि मतदान पूरी तरह बैलेट पेपर से हुआ था, फिर भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।
ईवीएम पर कांग्रेस के आरोप कमजोर पड़े
पिछले कुछ वर्षों से कांग्रेस लगातार ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाती रही है। पार्टी का आरोप रहा है कि ईवीएम में गड़बड़ी कर भाजपा को चुनावी लाभ पहुंचाया जाता है और इसलिए मतदान बैलेट पेपर से कराना चाहिए। उत्तराखंड के इन चुनावों में यह मांग पूरी हुई, लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा।
नतीजों का विश्लेषण
स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा ने दमदार उपस्थिति दर्ज कराई, जबकि कांग्रेस उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाई। कांग्रेस का यह दावा कि बैलेट पेपर से मतदान होने पर नतीजे उसके पक्ष में होंगे, इस चुनाव में गलत साबित हुआ। भाजपा की जीत से साफ हो गया कि जनता का झुकाव उसी की ओर बना हुआ है।
कांग्रेस के लिए आत्ममंथन का समय
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि कांग्रेस को अब केवल ईवीएम पर सवाल उठाने की रणनीति से आगे बढ़कर अपनी नीतियों और संगठनात्मक ढांचे पर ध्यान देना होगा। पार्टी के लिए यह आत्ममंथन करने का सही समय है कि आखिर उसे जनता का समर्थन क्यों नहीं मिल पा रहा है। क्या उसके मुद्दे जनता से कटे हुए हैं? क्या भाजपा की रणनीति ज्यादा प्रभावी साबित हो रही है?
उत्तराखंड के चुनावी नतीजे कांग्रेस के लिए स्पष्ट संदेश हैं कि केवल चुनावी प्रक्रिया पर सवाल उठाने से जीत हासिल नहीं होगी। जनता के भरोसे को फिर से जीतने के लिए पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूती से काम करना होगा। यदि कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बदलाव नहीं किया, तो आगामी चुनावों में भी उसे ऐसे ही नतीजों का सामना करना पड़ सकता है।
(रिपोर्ट: विशेष संवाददाता, देहरादून)