देहरादून: उत्तराखंड की शीतकालीन यात्रा को नया आयाम देने के प्रयासों को और बल मिलने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी माँ गंगा के शीतकालीन निवास मुखीमठ (मुखवा) के दौरे पर आ रहे हैं। यह यात्रा न केवल उत्तराखंड के धार्मिक पर्यटन को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी, बल्कि राज्य की शीतकालीन यात्रा को भी राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाएगी।
राज्य सरकार शीतकालीन चारधाम यात्रा को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। गंगोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ और यमुनोत्री धामों के शीतकालीन निवास स्थलों को धार्मिक पर्यटन के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। मुखवा, जहां माँ गंगा की डोली शीतकाल में लाई जाती है, इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। पीएम मोदी की यात्रा से इस पवित्र स्थल को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलने की पूरी संभावना है।
शीतकालीन यात्रा को क्यों मिल रही है प्राथमिकता?
उत्तराखंड सरकार शीतकाल में पर्यटन को बढ़ावा देकर स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने की रणनीति पर कार्य कर रही है। गर्मियों में जब चारधाम यात्रा चरम पर होती है, तो श्रद्धालुओं की संख्या काफी अधिक होती है, लेकिन सर्दियों में यह काफी कम हो जाती है। इसे देखते हुए मुखवा, ओंकारेश्वर मंदिर (उखीमठ), जोशीमठ और खरसाली जैसे स्थानों को विकसित किया जा रहा है, ताकि पर्यटक सालभर उत्तराखंड में धार्मिक पर्यटन का आनंद ले सकें।
प्रधानमंत्री की यह यात्रा स्थानीय पर्यटन, धार्मिक स्थलों के विकास और उत्तराखंड की आध्यात्मिक विरासत को वैश्विक स्तर पर प्रमोट करने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगी। इससे न केवल राज्य के धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि शीतकालीन यात्रा को एक स्थायी पहचान भी मिलेगी।
“डबल इंजन सरकार” की बड़ी पहल
राज्य सरकार केंद्र के सहयोग से उत्तराखंड के धार्मिक और आध्यात्मिक स्थलों को विश्वस्तरीय स्वरूप देने के लिए प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में उत्तराखंड की शीतकालीन यात्रा को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलेगी। हमारा लक्ष्य है कि श्रद्धालु सालभर प्रदेश के आध्यात्मिक स्थलों का दर्शन कर सकें।”
पीएम मोदी की यह यात्रा सिर्फ एक धार्मिक दौरा नहीं, बल्कि उत्तराखंड की शीतकालीन चारधाम यात्रा को लोकप्रिय बनाने की एक बड़ी पहल है। इससे राज्य के पर्यटन को नया आयाम मिलेगा और उत्तराखंड “सालभर तीर्थ यात्रा” के केंद्र के रूप में स्थापित हो सकेगा।