भारत में समान नागरिक संहिता (UCC) को लेकर लंबे समय से चर्चा चल रही है, और अब उत्तराखंड के बाद गुजरात भी इस दिशा में बड़ा कदम उठाने जा रहा है। गुजरात सरकार ने राज्य में UCC लागू करने की तैयारी शुरू कर दी है और इसके लिए एक उच्च-स्तरीय समिति गठित करने की घोषणा की गई है। यह निर्णय भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार की महत्वपूर्ण नीतियों में से एक माना जा रहा है, जिसका उद्देश्य सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करना है।
क्या है समान नागरिक संहिता (UCC)?
समान नागरिक संहिता का मतलब है कि देश के सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, गोद लेना, संपत्ति उत्तराधिकार और अन्य नागरिक मामलों में एक समान कानून लागू किया जाए, भले ही वे किसी भी धर्म, जाति या समुदाय से संबंधित हों। वर्तमान में, भारत में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और अन्य धर्मों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं, जो पारिवारिक मामलों को नियंत्रित करते हैं। UCC का उद्देश्य इन सभी अलग-अलग कानूनों को समाप्त करके एक समान नागरिक कानून बनाना है, जो सभी के लिए समान रूप से लागू होगा।
गुजरात सरकार की योजना
गुजरात सरकार ने उत्तराखंड के मॉडल को ध्यान में रखते हुए राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में काम शुरू कर दिया है। इसके लिए विशेषज्ञों, कानूनी विद्वानों और समाज के विभिन्न वर्गों से परामर्श लेने के लिए एक समिति बनाई जाएगी। यह समिति विभिन्न धार्मिक समुदायों की परंपराओं और रीति-रिवाजों का अध्ययन करेगी और UCC को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए आवश्यक सिफारिशें देगी।
गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और गृह राज्य मंत्री हर्ष संघवी ने इस फैसले की घोषणा करते हुए कहा कि यह कदम समाज में समानता और न्याय सुनिश्चित करेगा। सरकार का कहना है कि UCC का उद्देश्य किसी धर्म या समुदाय के खिलाफ नहीं, बल्कि सभी नागरिकों के लिए समान कानून बनाना है।
उत्तराखंड में UCC लागू होने के बाद गुजरात का फैसला
उत्तराखंड वह पहला राज्य बना जिसने 2024 में समान नागरिक संहिता को कानूनी रूप से लागू किया। उत्तराखंड सरकार ने इस कानून को लागू करने से पहले एक विस्तृत अध्ययन कराया और कई विशेषज्ञों की राय ली। उत्तराखंड में लागू UCC में शादी, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार से जुड़े कई प्रावधान हैं, जिससे यह सुनिश्चित किया गया है कि सभी नागरिकों को समान अधिकार मिलें।
उत्तराखंड में इस कानून के लागू होने के बाद, कई अन्य भाजपा-शासित राज्यों में भी इसे लागू करने की मांग उठी थी। अब गुजरात सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाकर संकेत दिया है कि यह नीति जल्द ही देश के अन्य राज्यों में भी लागू की जा सकती है।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं
गुजरात में UCC लागू करने की घोषणा के बाद इस पर राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।
समर्थन में तर्क:
भाजपा नेताओं और कई सामाजिक संगठनों का कहना है कि यह कदम भारत को समानता और एकता की दिशा में आगे बढ़ाएगा।
महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करने और लैंगिक भेदभाव खत्म करने में यह कानून सहायक होगा।
अलग-अलग पर्सनल लॉ होने से अक्सर विवाद होते हैं, UCC इसे समाप्त करेगा और एक समान न्याय प्रणाली को बढ़ावा देगा।
विपक्ष की आपत्ति:
कुछ राजनीतिक दलों और धार्मिक संगठनों का मानना है कि UCC लागू करना अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता में दखल हो सकता है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कुछ अन्य संगठनों ने इस फैसले पर चिंता जताई है और इसे चुनावी रणनीति बताया है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने भाजपा सरकार के इस कदम को राजनीति से प्रेरित बताया है।
UCC लागू करने की चुनौतियां
हालांकि UCC एक मजबूत कानूनी सुधार माना जाता है, लेकिन इसे लागू करने में कई चुनौतियां हो सकती हैं, जैसे:
1. विभिन्न धार्मिक समुदायों की सहमति: कई समुदाय अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों को बनाए रखना चाहते हैं और इसे उनके धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप मानते हैं।
2. कानूनी बाधाएं: संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं, जिससे UCC को लागू करने में संवैधानिक जटिलताएं हो सकती हैं।
3. सामाजिक जागरूकता: कई
नागरिक अभी तक UCC के लाभों और उद्देश्यों से अनजान