मोदी सरकार के हालिया फैसले ने विदेशी निवेशकों के बीच हड़कंप मचा दिया है। कैपिटल गेन्स टैक्स लगाने के कदम को ‘सबसे बड़ी गलती’ करार देते हुए विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यह भारत की निवेश संभावनाओं को तगड़ा झटका दे सकता है। सवाल उठता है—क्या यह निर्णय विदेशी निवेशकों का भरोसा तोड़ देगा? और क्या भारतीय अर्थव्यवस्था इसकी कीमत चुकाने को तैयार है?

क्या है सरकार का नया फैसला?
सरकार ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) पर कैपिटल गेन्स टैक्स लागू कर दिया है, जो अब तक टैक्स-फ्री था। यह टैक्स लॉन्ग-टर्म और शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन्स पर अलग-अलग दरों से लगेगा, जिससे भारत में निवेश करने वाले विदेशी फंड्स की लागत बढ़ जाएगी।
निवेशकों की प्रतिक्रिया: डर और अनिश्चितता
इस फैसले के तुरंत बाद ही शेयर बाजार में नकारात्मक असर दिखने लगा। एफपीआई ने भारतीय बाजार से पैसे निकालने शुरू कर दिए, जिससे सेंसेक्स और निफ्टी में गिरावट दर्ज की गई। वैश्विक निवेशकों ने भारत सरकार की नीति पर अनिश्चितता और अविश्वास जताया।

विदेशी निवेशकों को क्या नुकसान होगा?
1. अतिरिक्त टैक्स बोझ: अब तक जो लाभ कर-मुक्त था, उस पर कर देना होगा।
2. अनिश्चितता का माहौल: सरकार की अचानक नीतिगत बदलावों से निवेशकों को झटका लगा।
3. प्रतिस्पर्धा में गिरावट: सिंगापुर और दुबई जैसे बाजार कर छूट देकर निवेशकों को लुभा रहे हैं, जबकि भारत टैक्स बढ़ा रहा है।
भारत को कितना नुकसान?
एफपीआई की निकासी: विदेशी निवेशक अपने पोर्टफोलियो का बड़ा हिस्सा भारत से निकाल सकते हैं।
रुपये पर दबाव: डॉलर की निकासी से रुपया कमजोर हो सकता है।
स्टार्टअप और टेक कंपनियों पर असर: बड़ी संख्या में स्टार्टअप्स को विदेशी फंडिंग मिलती है, जो अब प्रभावित होगी।
सरकार की मंशा और गलत आकलन
सरकार का मानना है कि इससे राजस्व में वृद्धि होगी और कर प्रणाली में समानता आएगी। लेकिन विशेषज्ञों का तर्क है कि यह फैसला शॉर्ट-टर्म रेवेन्यू बढ़ाने के चक्कर में लॉन्ग-टर्म ग्रोथ को मार सकता है।
क्या सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए?
अगर सरकार जल्द ही स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं लाती, तो भारत के प्रति निवेशकों का भरोसा गंभीर रूप से कमजोर हो सकता है। कुछ विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार संशोधन कर सकती है, जैसे—
कर की दरें कम करना
कुछ खास सेक्टरों के लिए छूट देना
नए निवेश के लिए ग्रेस पीरियड लागू करना
क्या सरकार की यह ‘सबसे बड़ी गलती’ भारतीय बाजारों पर स्थायी असर डालेगी? या फिर सरकार इसे सुधारकर निवेशकों का भरोसा जीत पाएगी? जब तक इन सवालों के जवाब नहीं मिलते, बाजार असमंजस में रहेगा और निवेशक भारत से मुंह मोड़ सकते हैं।
