महाराष्ट्र की राजनीति में राज ठाकरे एक बार फिर अपने बयान को लेकर चर्चा में हैं। इस बार उन्होंने कुंभ मेले के जल पर टिप्पणी कर राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। एमएनएस प्रमुख ने कहा कि उनके सहयोगी बाला नांदगांवकर प्रयागराज महाकुंभ से जल लेकर आए थे, लेकिन उन्होंने उसे पीने से इनकार कर दिया। उनका दावा है कि “वहां जाने के बाद लोग बीमार हो गए।”
क्या हिंदुत्व की राजनीति में पिछड़ रहे हैं राज ठाकरे?
राज ठाकरे लंबे समय से हिंदुत्व की राजनीति की ओर बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने हनुमान चालीसा विवाद से लेकर अयोध्या यात्रा तक कई हिंदूवादी रुख अपनाए, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में उनकी पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। अब जब महाराष्ट्र में चुनावी माहौल गरमा रहा है, तो उनका कुंभ जल पर बयान कई सवाल खड़े कर रहा है।
उद्धव ठाकरे भी दे चुके हैं विवादित बयान
इससे पहले शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी कुंभ स्नान पर कटाक्ष किया था। उन्होंने कहा था, “50 खोकों (50 करोड़ की रिश्वत) के बाद गंगा में डुबकी लगाने का क्या फायदा?” यह बयान बीजेपी और शिंदे गुट पर हमला था, लेकिन इसका धार्मिक समुदायों में गलत असर पड़ा।
बीजेपी और संत समाज की प्रतिक्रिया
बीजेपी ने राज ठाकरे के बयान को सनातन संस्कृति का अपमान बताया है। भाजपा नेता राम कदम ने कहा, “हिंदुत्व की बात करने वाले राज ठाकरे अब कुंभ पर सवाल उठा रहे हैं? क्या यह उनकी हताशा का संकेत नहीं?”
वहीं, प्रयागराज के संत समाज ने भी नाराजगी जताई है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महंत नरेंद्र गिरि ने कहा, “जो लोग हिंदुत्व की राजनीति कर रहे हैं, वे ही सनातन पर सवाल उठा रहे हैं। कुंभ का जल अमृत के समान है।”
चुनावी रणनीति या दिशा भ्रम?
राज ठाकरे का बयान ऐसे समय आया है जब महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों की तैयारी हो रही है। सवाल यह है कि क्या राज ठाकरे खुद को फिर से प्रासंगिक बनाने के लिए सुर्खियों में बने रहना चाहते हैं, या फिर यह उनकी राजनीतिक दिशा भ्रम का संकेत है?
एक ओर शिवसेना (UBT) बीजेपी और शिंदे गुट पर हमले कर रही है, वहीं दूसरी ओर एमएनएस अपने बयान से हिंदुत्ववादी वोटों में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। लेकिन क्या ऐसे बयानों से उन्हें फायदा होगा या नुकसान, यह आने वाला चुनाव तय करेगा।