श्रीनगर/नई दिल्ली:
जहां एक ओर आतंकियों ने कायरता की मिसाल पेश की, वहीं कश्मीर घाटी ने एक ऐसा सच्चा हीरो खो दिया जिसने अपनी जान की परवाह किए बिना दो पर्यटकों की जान बचाई।
पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए सैयद आदिल हुसैन, जो कि एक स्थानीय पोनी राइड ऑपरेटर थे, अब पूरे देश में बहादुरी की प्रतीक बन चुके हैं।
आतंकी से भिड़ गए, पर्यटकों को बचाया
प्रत्यक्षदर्शियों और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आतंकी हमला जब हुआ, तब सैयद आदिल हुसैन मौके पर मौजूद थे।
उन्होंने आतंकियों को टूरिस्ट पर फायरिंग करते देखा और तुरंत एक आतंकी की राइफल छीनने की कोशिश की।
यह हिम्मत भरा प्रयास दो पर्यटकों के भागने के लिए एक छोटा सा मौका बन गया।
आदिल हुसैन ने शायद अपनी जान का अंदेशा पहले ही लगा लिया था, लेकिन उन्होंने बिलकुल नहीं डगमगाए।
एकमात्र स्थानीय, एकमात्र मुस्लिम शहीद
इस हमले में सैयद आदिल हुसैन इकलौते स्थानीय व्यक्ति थे जो मारे गए।
वे इस हमले में मारे गए एकमात्र मुस्लिम थे, और यही बात उन्हें और भी खास बनाती है।
उनकी यह शहादत उस नफरत के नैरेटिव को करारा जवाब है, जो आतंकी समूह फैलाना चाहते हैं।
पूरा गांव गमगीन – घाटी में उठ रही है “शहीद आदिल” को श्रद्धांजलि की लहर
आदिल का अंतिम संस्कार बेहद भावुक माहौल में हुआ, जहां गांववालों की आंखें नम थीं लेकिन दिलों में गर्व की भावना थी।
लोगों ने ‘शहीद आदिल अमर रहें’ के नारे लगाए और मांग की कि उन्हें राष्ट्रीय सम्मान से नवाज़ा जाए।
सिस्टम से सवाल – क्या आदिल को मिलेगा वो सम्मान जो वह डिज़र्व करता है?
अब सवाल यह उठता है कि क्या सरकार, मीडिया और देशवासी सैयद आदिल हुसैन को वही सम्मान देंगे जो एक बहादुर सिपाही को मिलता है?
क्या उनके नाम पर कोई स्मारक, पुरस्कार या शौर्य सम्मान की घोषणा होगी?
यह कहानी केवल वीरता की नहीं, इंसानियत की भी है
सैयद आदिल हुसैन ने यह साबित कर दिया कि धर्म से ऊपर होती है इंसानियत और बहादुरी।
उनकी यह कुर्बानी आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाएगी कि कभी-कभी एक आम इंसान भी असाधारण बन जाता है।
India will never forget this Braveheart of Pahalgam.