तुर्की सेब का बहिष्कार: भारत विरोध पर पुणे के व्यापारियों का तीखा जवाब, 1500 करोड़ के व्यापार पर ब्रेक

पुणे के फल व्यापारियों ने तुर्की से आयातित सेबों का बहिष्कार करने की घोषणा की है। इसका कारण तुर्की द्वारा हाल ही में पाकिस्तान के पक्ष में लिए गए राजनीतिक रुख को बताया गया है। सेब व्यापारियों ने कहा कि जब तुर्की भूकंप जैसी त्रासदी से जूझ रहा था, तब भारत सबसे पहले मदद के लिए आगे आया था, लेकिन अब वही तुर्की अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के विरोध में खड़ा दिखाई दे रहा है।

व्यापारियों की नाराज़गी, बड़ा निर्णय
स्थानीय व्यापारी संघों ने स्पष्ट किया कि वे अब तुर्की से आयातित सेब को अपनी मंडियों और दुकानों में स्थान नहीं देंगे। “हमसे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि हम ऐसे देश का माल बेचें, जो भारत के हितों के खिलाफ खड़ा हो,” एक प्रमुख फल व्यापारी ने कहा।

उनका कहना है कि तुर्की के सेब महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली-एनसीआर में हर साल केवल 3 महीने बेचे जाते हैं और यह व्यापार 1200 से 1500 करोड़ रुपये तक का होता है। यह फैसला न केवल आर्थिक दृष्टि से बड़ा है, बल्कि एक स्पष्ट संदेश भी देता है कि व्यापारिक समुदाय भी राष्ट्रीय सम्मान और विदेश नीति को गंभीरता से लेता है।

तुर्की को पहला सहारा भारत ही बना था
व्यापारियों ने याद दिलाया कि फरवरी 2023 में जब तुर्की में भीषण भूकंप आया था, तब भारत सरकार ने ‘ऑपरेशन दोस्त’ के तहत राहत और बचाव के लिए सबसे पहले मेडिकल टीम, खोजी दस्ते और राहत सामग्री भेजी थी। “हमने उन्हें भाई समझा, और उन्होंने पाकिस्तान का साथ देकर हमें धोखा दिया,” – यह भावना अब व्यापारियों में गहराई से बैठ गई है।

बहिष्कार से क्या होगा असर?
विशेषज्ञों के अनुसार, यह बहिष्कार तुर्की के लिए आर्थिक झटका हो सकता है। भारत, खासतौर पर पश्चिम भारत के कई शहर तुर्की सेबों का एक बड़ा उपभोक्ता रहा है। अब व्यापारियों का ध्यान हिमाचल, कश्मीर और ईरान जैसे वैकल्पिक स्रोतों की ओर मुड़ सकता है।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
इस कदम पर कई राष्ट्रवादी संगठनों ने व्यापारियों की सराहना की है। सोशल मीडिया पर भी इस निर्णय की काफी चर्चा हो रही है और #BoycottTurkishApples ट्रेंड कर रहा है।

क्या यह ट्रेंड अन्य शहरों में फैलेगा?
पुणे के इस फैसले के बाद अन्य व्यापार मंडल भी इसी दिशा में सोच सकते हैं। अगर यह बहिष्कार राष्ट्रीय स्तर पर फैलता है, तो यह भारत की विदेश नीति के लिए जन समर्थन का प्रतीक बन सकता है।

अंततः यह निर्णय केवल सेब के व्यापार का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वाभिमान और विदेश नीति में जन भागीदारी का प्रतीक बनता दिख रहा है।

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