दिल्ली के सियासी गलियारों में इन दिनों एक ही फुसफुसाहट सुनाई दे रही है – क्या शशि थरूर कांग्रेस छोड़ने वाले हैं? whispersinthecorridors.com की रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्व विदेश राज्य मंत्री और कांग्रेस के ग्लोबल चेहरे माने जाने वाले डॉ. शशि थरूर इन दिनों पार्टी नेतृत्व से नाराज़ बताए जा रहे हैं।
दरअसल, पहलगाम आतंकी हमले के बाद उन्होंने जिस तरह केंद्र की मोदी सरकार का खुलकर समर्थन किया और कांग्रेस हाईकमान के बयानों से किनारा किया, उससे पार्टी के शीर्ष नेताओं में असंतोष की लहर दौड़ गई। सूत्रों का कहना है कि थरूर को इस व्यवहार पर पार्टी की ओर से सफाई देने को कहा गया था, लेकिन उन्होंने इसे पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया। यही रवैया उनकी पार्टी से दूरी की ओर इशारा करता है।
‘थरूर अब थर्राने लगे हैं कांग्रेस के भीतर’
कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो थरूर लंबे समय से पार्टी लाइन से इतर विचार रखते रहे हैं – चाहे वह 2022 में कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ना हो या संसद में सरकार के कुछ नीतिगत फैसलों का सैद्धांतिक समर्थन करना। अब जब उन्होंने मोदी सरकार की आतंकवाद नीति की सराहना की है, तो यह पार्टी के लिए एक असहनीय संकेत बन गया।
थरूर को सौंपा गया राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व!
इस राजनीतिक पृष्ठभूमि के बीच हालिया रिपोर्ट ने नया मोड़ ला दिया है। ऑपरेशन सिंधूर और सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ भारत की लगातार लड़ाई के तहत, शशि थरूर को 7-सदस्यीय सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वालों में शामिल किया गया है, जो इस महीने के अंत में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और प्रमुख साझेदार देशों का दौरा करेगा।
प्रतिनिधिमंडल में अन्य प्रमुख नाम हैं:
- रविशंकर प्रसाद (भाजपा)
- संजय कुमार झा (JDU)
- बैजयंत पांडा (भाजपा)
- कनिमोझी करुणानिधि (DMK)
- सुप्रिया सुले (NCP)
- श्रीकांत एकनाथ शिंदे (शिवसेना)
इस सूची में थरूर की उपस्थिति, मोदी सरकार के प्रति उनके हालिया रुख और कांग्रेस से उनकी दूरी – इन तीनों बातों को एक साथ जोड़ने पर यह स्पष्ट होता है कि अब वे एक नई राजनीतिक दिशा की ओर कदम बढ़ा सकते हैं।
क्या बीजेपी में जा सकते हैं थरूर?
यह सवाल सबसे ज़्यादा गूंज रहा है – क्या थरूर का अगला ठिकाना भाजपा हो सकता है? राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो फिलहाल इसका कोई ठोस संकेत नहीं है, लेकिन मोदी सरकार की विदेश नीति, वैश्विक मंचों पर भारत की भूमिका और उनकी प्रशंसा को देखते हुए यह संभावना पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता।
कांग्रेस के लिए एक और झटका?
अगर शशि थरूर जैसे वरिष्ठ, अंतरराष्ट्रीय छवि वाले नेता पार्टी छोड़ते हैं, तो यह कांग्रेस के लिए न केवल वैचारिक बल्कि रणनीतिक तौर पर भी एक बड़ा नुकसान होगा। विशेषकर तब जब पार्टी पहले ही आंतरिक कलह, जनाधार में गिरावट और नेतृत्व संकट से जूझ रही है।
सत्ता के गलियारों की कानाफूसी कब हकीकत बनेगी?
सूत्रों का कहना है कि थरूर अब किसी ‘बड़े निर्णय’ की दहलीज़ पर खड़े हैं। उनकी चुप्पी और सोशल मीडिया गतिविधियाँ भी इस ओर इशारा कर रही हैं कि सबकुछ सामान्य नहीं है। राजनीति में जब कोई वरिष्ठ नेता बोलना बंद कर दे, तो समझिए – वह बहुत कुछ कहने वाला है।